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नमस्कार मित्रों, आज के इस खास ओडियोबुक में आप सभी का स्वागत है, आज हम आपको बताने जा रहे हैं विश्व साहित्य के एक ऐसे शाहकार यानि मास्टरपीस के बारे में, जिसने पीढ़ियों को सोचने पर विवश किया है – फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की का कालजयी उपन्यास, "अपराध और दंड"। यह सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि इंसानी मन की गहराइयों में उतरने वाला एक सफ़र है, एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है जो आपको भीतर तक झिंझोर कर रख देगा। हम मिलेंगे एक नौजवान, भूतपूर्व छात्र रोडिऑन रास्कोलनिकोव से, जो सेंट पीटर्सबर्ग की घुटन भरी गलियों में, भयंकर ग़रीबी और अकेलेपन से जूझ रहा है। पर उसकी असली फाइट बाहर नहीं, उसके अपने मन के भीतर चल रही है। उसके दिमाग़ में एक ख़तरनाक, एक असामान्य विचार पनप रहा है – क्या कुछ असाधारण लोगों को समाज की भलाई के नाम पर नैतिक सीमाओं को, यहाँ तक कि क़ानून को भी, भंग करने का हक़ है? क्या एक 'तुच्छ' जान लेकर हज़ारों का भला किया जा सकता है? इसी विचार के चलते वह एक भयानक अपराध कर बैठता है, और यहीं से शुरू होती है उसके ज़मीर की आवाज़, अपराध-बोध के असहनीय बोझ, भय और पश्चाताप की एक ऐसी यात्रा, जो आपको अंत तक बांधे रखेगी। हम देखेंगे कि कैसे उसका एक फ़ैसला न सिर्फ़ उसकी अपनी ज़िंदगी, बल्कि उससे कनेक्टेड कई और लोगों – उसकी माँ, बहन, दोस्त, और मासूम सोन्या मार्मेलादोवा – की ज़िंदगियों को हमेशा के लिए बदल देता है। यह कहानी है सही और ग़लत की शाश्वत फाइट की, मानवीय दर्द की, प्रेम की अद्भुत शक्ति की, और अंत में, प्रायश्चित और मुक्ति की संभावना की। क्या रास्कोलनिकोव अपने ही बनाए जाल से निकल पाएगा? क्या उसे उसके अपराधों की सज़ा मिलेगी, या उसका ज़मीर ही उसे सबसे दर्दनाक सज़ा देगा? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस ओडियोबुक सारांश में मिलेंगे। अगर आप अपना बहुमूल्य समय हमें देने के लिए तैयार हैं तो चलिए पहला अध्याय शुरू करते हैं! भाग 1: अपराध का विचार और अंजाम सेंट पीटर्सबर्ग की घुटन भरी गर्मी, गलियों की असहनीय गंध, और लोगों की आँखों में तैरती नाउम्मीदी के बीच, एक नौजवान, भूतपूर्व छात्र, रोडिऑन रोमानोविच रास्कोलनिकोव, अपने छोटे से, ताबूत जैसे कमरे में क़ैद है। उसका कमरा इतना छोटा है कि लगता है जैसे दीवारें उसे कुचलने पर आमादा हैं। वह भयंकर ग़रीबी में जी रहा है, कई दिनों से उसने ठीक से खाना नहीं खाया, और मकान मालकिन को किराया न चुका पाने का निरंतर भय उसे सताता रहता है। पर उसकी परेशानी सिर्फ़ भौतिक यानि physical नहीं है, उसके मन में एक भयानक, एक असामान्य विचार अपना रूट्स जमा रहा है। एक ऐसा विचार जो समाज के, नैतिकता के, और मानवता के हर नियम के ख़िलाफ़ है। रास्कोलनिकोव सिर्फ़ भूखा और परेशान नहीं है, वह अपने आप को और इस दुनिया को समझने की एक खतरनाक बौद्धिक यात्रा पर निकल चुका है। वह घंटों अपने उस छोटे से, हवा-रहित कमरे में लेटा रहता है, छत को घूरता हुआ, अपने अंदर चल रहे तूफ़ान से जूझता हुआ। उसके आस-पास की दुनिया उसे घृणित लगती है – यह अन्याय, यह असमानता, यह बेमतलब की दर्द। उसे लगता है जैसे वह इस डूबते हुए समाज का हिस्सा बनकर खुद भी डूब रहा है। उसके क्लोथ्स फटे-पुराने हैं, उसकी चाल में एक अजीब सी हिचकिचाहट और साथ ही एक बुखार जैसी तेज़ी है। वह लोगों से नज़रें मिलाने से कतराता है, जैसे कोई राज़ छिपा रहा हो, जो कि वह सचमुच छिपा रहा है। वह राज़ है एक योजना, एक सिद्धांत, और एक होने वाला अपराध। रास्कोलनिकोव का मानना है कि मानवजाति मूल रूप से दो हिस्सों में बंटी है: साधारण लोग यानि ordinary people, जो नियमों का पालन करने और चुपचाप जीने के लिए बने हैं, और असाधारण लोग यानि extraordinary people, जैसे नेपोलियन, जिन्हें समाज की भलाई के लिए या किसी महान लक्ष्य के लिए नैतिक सीमाओं को लांघने का, यहाँ तक कि ख़ून बहाने का भी अधिकार है। वह खुद को इसी दूसरी श्रेणी में देखता है, या देखना चाहता है। यह विचार उसके मन में धीरे-धीरे नहीं पनपा, बल्कि यह उसकी ग़रीबी, उसकी लाचारी, समाज के प्रति उसकी घृणा और उसके टूटे हुए अभिमान का एक ज़हरीला फल है। उसे लगता है कि अगर वह एक तुच्छ, लालची, सूदखोर वृद्धा, अलयोना इवानोव्ना, जो दूसरों की मज़बूरी का फ़ायदा उठाकर पैसा बनाती है, उसकी हत्या कर दे और उसका पैसा चुरा ले, तो वह न सिर्फ़ अपनी माली हालत सुधारेगा, बल्कि उस पैसे से हज़ारों अच्छे काम कर सकेगा, अपनी शिक्षा पूरी कर सकेगा, और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन सकेगा। क्या एक "जूं" जैसी औरत की जान की क़ीमत हज़ारों ज़िंदगियों को बेहतर बनाने के सामने कुछ भी है? यह सवाल उसके दिमाग़ में लगातार घूमता रहता है। वह इस सिद्धांत को सही साबित करने के लिए तर्क गढ़ता है, इतिहास से उदाहरण खोजता है, पर कहीं गहरे में, एक आवाज़ उसे रोकती है, उसे इस विचार की भयावहता का अहसास कराती है। लेकिन उसकी बाहरी परिस्थितियां और उसका अहंकार उसे इस अँधेरे रास्ते पर और आगे धकेलते हैं। वह उस वृद्धा साहूकारा के घर का मुआयना करने जाता है, एक मामूली सी चीज़ गिरवी रखने के बहाने। वह उसके घर का नक्शा, उसकी आदतें, उसके अकेले होने का समय, सब कुछ अपने ज़ेहन में उतार लेता है। हर यात्रा उसके इरादे को और पुख़्ता करती जाती है, लेकिन साथ ही उसके अंदर का द्वंद्व और तीव्र होता जाता है। उसे इस योजना से घिन भी आती है, और एक अजीब सा आकर्षण भी महसूस होता है। इसी मानसिक उथल-पुथल के बीच, रास्कोलनिकोव की मुलाक़ात एक शराबी, पूर्व सरकारी कर्मचारी, सेम्योन ज़ख़ारोविच मार्मेलादोव से एक सस्ते से मधुशाला यानि tavern में होती है। मार्मेलादोव अपनी ज़िंदगी की त्रासद कहानी रास्कोलनिकोव को सुनाता है – कैसे उसकी शराब की लत ने उसके परिवार को बर्बाद कर दिया, उसकी पत्नी कतेरीना इवानोव्ना बीमार है और गुस्से में रहती है, उसके बच्चे भूखे हैं, और उसकी अपनी बेटी, सोन्या, परिवार का पेट पालने के लिए वेश्यावृत्ति जैसे घिनौने काम करने पर मजबूर है। मार्मेलादोव की कहानी सुनकर रास्कोलनिकोव के मन में घृणा और दया का मिला-जुला भाव उठता है। उसे इस व्यक्ति की कमज़ोरी पर गुस्सा आता है, लेकिन उसकी दर्द और अपमान उसे छू जाते हैं। वह मार्मेलादोव को उसके घर तक ले जाता है, जहाँ वह उस परिवार की भयावह ग़रीबी और निराशा को अपनी आँखों से देखता है। कतेरीना इवानोव्ना का अभिमान और उसकी हताशा, बच्चों की मासूम आँखों में भूख और भय, यह सब देखकर रास्कोलनिकोव का मन और व्यथित हो उठता है। वह चुपके से अपने बचे-खुचे कुछ पैसे उनकी विंडो पर रख देता है, एक क्षणिक दयालुता के आवेग में, लेकिन अगले ही पल उसे इस पर पछतावा होता है। यह घटना उसके मन में चल रहे संघर्ष को और हवा देती है। क्या यही है साधारण लोगों का हश्र? क्या सोन्या जैसी मासूम गर्ल्स को ऐसे ही पिसना होता है? क्या उसका असाधारण बनने का सिद्धांत ही इस सबसे निकलने का एकमात्र रास्ता है? मार्मेलादोव का परिवार उसे उस सामाजिक प्रॉब्लम्स का जीता-जागता सबूत लगता है जिसे ख़त्म करने के लिए वह उस वृद्धा की जान लेने की सोच रहा है। फिर उसे अपनी माँ का एक पत्र मिलता है, जो उसके अंदर भावनाओं का सैलाब ला देता है। पत्र में उसकी माँ पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना और बहन दुन्या यानि अवदोत्या रोमानोव्ना के आने की ख़बर होती है। पत्र में यह भी लिखा होता है कि दुन्या ने अपनी इज़्ज़त और भविष्य को ख़तरे में डालकर एक अमीर, पर अप्रिय व्यक्ति, प्योत्र पेत्रोविच लूज़िन से शादी करने का फ़ैसला किया है, सिर्फ़ इसलिए ताकि वह रास्कोलनिकोव की मदद कर सके, उसकी शिक्षा पूरी करवा सके। माँ का पत्र प्यार और चिंता से भरा है, लेकिन उसमें छुपी हुई बहन की क़ुरबानी की कहानी रास्कोलनिकोव को भीतर तक परेशान देती है। उसे लगता है जैसे उसकी बहन भी सोन्या की तरह ही खुद को बेच रही है, फ़र्क सिर्फ़ तरीके का है। यह ख़याल उसके लिए असहनीय है। वह अपनी बहन को ऐसी क़ुरबानी नहीं देने दे सकता। उसे लगता है कि अगर वह अपराध नहीं करेगा, तो उसकी बहन की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी। यह पत्र उसके इरादे को लगभग अंतिम रूप दे देता है। अब यह सिर्फ़ एक सिद्धांत का परीक्षण नहीं है, यह उसके परिवार के सम्मान और भविष्य को बचाने का एकमात्र रास्ता बन गया है। उसका अपराध अब उसे ज़्यादा ज़रूरी, ज़्यादा न्यायसंगत लगने लगता है। माँ और बहन का प्यार, उनकी उम्मीदें, और दुन्या का आत्म-बलिदान का विचार, यह सब मिलकर उसके अंदर एक भयानक संकल्प पैदा करते हैं। वह लूज़िन जैसे लोगों से घृणा करता है, जो पैसे के बल पर दूसरों की मज़बूरियों का फ़ायदा उठाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वह वृद्धा साहूकारा करती है। अब उसे लगता है कि उसके पास पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं बचा है। वह या तो यह क़दम उठाएगा और अपने प्रियजनों को बचाएगा, या फिर ग़रीबी और अपमान में घुट-घुट कर मर जाएगा, और उन्हें भी अपने साथ ले डूबेगा। अंत में, वह दिन आ ही जाता है। रास्कोलनिकोव बुखार जैसी हालत में है, उसका मन और शरीर दोनों कांप रहे हैं। वह अंतिम तैयारी करता है। उसने अपने कोट के नीचे एक फंदा सिल लिया है जिसमें हथियार छुपाई जा सके। उसने एक नकली चीज़ गिरवी रखने के लिए तैयार की है ताकि वृद्धा का ध्यान भटका सके। वह एक हथियार चुराता है। उसका हर कदम जैसे किसी और शक्ति द्वारा नियंत्रित हो रहा है। वह वृद्धा अलयोना इवानोव्ना के घर पहुँचता है। दरवाज़ा खुलता है। वह अंदर जाता है। माहौल तनावपूर्ण है। वह उसे नकली गिरवी देता है, वृद्धा उसे खोलने में मशगूल होती है। यही वह क्षण है। रास्कोलनिकोव हथियार निकालता है... और वार कर देता है। एक बार, फिर दूसरी बार। ख़ून बह निकलता है। वृद्धा का बेजान शरीर फ़र्श पर गिर जाता है। वह हाँफ रहा है, उसके कान बज रहे हैं। वह जल्दी से चाबियाँ ढूंढता है, कुछ गहने और पैसे एक थैले में भरता है। लेकिन तभी, एक अनहोनी होती है। दरवाज़े पर दस्तक होती है! उसे उम्मीद नहीं थी कि कोई इतनी जल्दी आएगा। क्या वह पकड़ा गया? उसका दिल ज़ोरों से बिट करने लगता है। वह छिपने की जगह तलाशता है। और फिर दरवाज़ा खुलता है, और अंदर आती है अलयोना की सौतेली, शांत और मासूम बहन, लिज़ावेता। लिज़ावेता उसे देख लेती है, ख़ून देख लेती है, अपनी बहन का शव देख लेती है, और भय से जम जाती है। रास्कोलनिकोव के पास सोचने का समय नहीं है। उसे कोई गवाह नहीं चाहिए। वह लिज़ावेता पर भी हथियार से वार कर देता है। दो हत्याएं। एक सिद्धांत के परीक्षण के लिए शुरू हुआ काम अब एक वीभत्स, दोहरे हत्याकांड में बदल चुका है। कमरा ख़ून से सना है, हवा में मौत की गंध है, और रास्कोलनिकोव अकेला है, अपने हाथों में दो ज़िंदगियों का ख़ून लिए। वह कांप रहा है, भयभीत है, लेकिन कहीं न कहीं, उसे एक भयानक एहसास हो रहा है कि यह अंत नहीं, बल्कि एक अंतहीन यात्रा की शुरुआत है। क्या वह बचकर निकल पाएगा? क्या उसका सिद्धांत सही था? या उसने अपने जीवन की सबसे भयानक भूल कर दी है? दरवाज़े के बाहर और क़दमों की आहट सुनाई देती है... क्या अब उसका अंत निश्चित है? रास्कोलनिकोव के मन की गहराइयों में जो विचार पनप रहा था, जो सिद्धांत उसने गढ़ा था, क्या वह वास्तव में इतना मज़बूत था कि दो इंसानों की जान लेने को सही ठहरा सके? या यह सिर्फ़ उसकी हताशा, उसके अहंकार और उसकी बीमारी की उपज थी? इस ओडियोबुक के पहले भाग में आपने रास्कोलनिकोव के अपराध तक के सफ़र को महसूस किया। आपने उसकी ग़रीबी, उसके मानसिक संघर्ष और उसके भयानक निर्णय के पीछे के कारणों को समझा। अब मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, क्या कभी परिस्थितियाँ इतनी विषम हो सकती हैं कि किसी इंसान के लिए समाज के सबसे बुनियादी नियम यानि किसी की जान न लेने के नियम को ब्रेक करना जायज़ हो जाए? क्या 'ग्रेटर गुड' यानि বৃহত্তর भलाई के नाम पर किया गया अपराध, अपराध नहीं रहता? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि रास्कोलनिकोव के इस 'असाधारण' मनुष्य के सिद्धांत के बारे में आप क्या सोचते हैं। क्या आपको लगता है कि उसके तर्क में कोई सच्चाई थी, या यह सिर्फ़ एक भटका हुआ विचार था? आपके विचार जानने का हमें इंतज़ार रहेगा। भाग 2: अपराध-बोध, संदेह और मार्मेलादोव परिवार हत्याकांड के उस भयावह कमरे से किसी तरह बच निकलने के बाद, रास्कोलनिकोव वापस अपनी उस छोटी, घुटन भरी कोठरी में पहुँच तो गया, पर वह अब पहले वाला रास्कोलनिकोव नहीं था। उसके हाथ कांप रहे थे, उसका पूरा वज़ूद थरथरा रहा था, और उसके कानों में अब भी लिज़ावेता की अंतिम, भयभीत चीख़ गूँज रही थी। वह अपने क्लोथ्स पर लगे ख़ून के हल्के छींटों को देखता है, उन चोरी के सामान को देखता है – कुछ गहने, एक बटुआ – और उसे अचानक इन चीज़ों से तीव्र घृणा हो उठती है। यह वो सामान नहीं था जिसके लिए उसने इतना गहरा क़दम उठाया था, यह तो उसके अपराध का, उसकी गिरावट का प्रतीक था। उसका महान सिद्धांत, उसका नेपोलियन बनने का ख़्वाब, सब ख़ून और भय में सना हुआ महसूस होता है। वह जल्दी से उन चीज़ों को अपने कमरे के एक कोने में, दीवार के उखरे हुए पलस्तर के पीछे छिपा देता है, जैसे किसी ज़हरीले सांप को छुपा रहा हो। लेकिन क्या चीज़ों को छुपा देने से अपराध छुप जाता है? क्या दीवारों के पीछे छिपाने से ज़मीर पर लगा दाग़ मिट जाता है? नहीं, बिलकुल नहीं। रास्कोलनिकोव को जल्द ही यह एहसास होने वाला था कि असली क़ैदख़ाना यह कोठरी नहीं, बल्कि उसका अपना मन बन चुका है। वह तेज़ बुख़ार की चपेट में आ जाता है। उसका शरीर आग की तरह तप रहा है, और उसका दिमाग़ ख़यालों और भयानक तस्वीरों के दलदल में गोते लगा रहा है। वह अर्ध-बेहोशी यानि delirium की हालत में चला जाता है। उसे लगता है जैसे कमरा घूम रहा है, लोग उस पर उंगलियाँ उठा रहे हैं, फुसफुसा रहे हैं। उसे बार-बार दरवाज़े पर दस्तक सुनाई देती है, उसे लगता है पुलिस आ गयी है, उसे गिरफ्तार करने। वह चीख़ना चाहता है, भागना चाहता है, पर उसका शरीर उसका साथ नहीं देता। यह बुख़ार सिर्फ़ जिस्मानी नहीं था, यह उसके ज़मीर का बुख़ार था, अपराध-बोध की आग थी जो उसे भीतर ही भीतर जला रही थी। उसके सिद्धांत ने उसे बताया था कि असाधारण मनुष्य को अपराध के बाद कोई पछतावा नहीं होता, पर यहाँ तो वह दर्द और भय के अथाह सागर में डूब रहा था। क्या उसका सिद्धांत ग़लत था? या वह खुद ही असाधारण नहीं था? यह सवाल उसे उस अर्ध-बेहोशी में भी कचोटता रहता है। इसी बीच, उसे पुलिस स्टेशन से एक सम्मन यानि बुलावा मिलता है। सम्मन देखते ही रास्कोलनिकोव के पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। उसे यकीन हो जाता है कि सब ख़त्म हो गया, वे उसके बारे में जान गए हैं। उसका भय चरम पर पहुँच जाता है। कांपते हुए, धीमे क़दमों से वह पुलिस स्टेशन पहुँचता है। वहाँ का माहौल, पुलिसवालों की सामान्य बातचीत भी उसे अपने ख़िलाफ़ एक षड्यंत्र लगती है। हर नज़र उसे घूरती हुई महसूस होती है। पर असलियत कुछ और थी। सम्मन उसकी मकान मालकिन द्वारा किराया न चुकाने की शिकायत के सिलसिले में था, न कि हत्या के बारे में। लेकिन रास्कोलनिकोव का अपराध-ग्रस्त मन हर चीज़ को हत्या से मिलाकर देख रहा था। पुलिस अधिकारी उससे सामान्य पूछताछ कर रहे थे, पर रास्कोलनिकोव को उनके हर सवाल में छुपा हुआ मतलब नज़र आ रहा था। वह जवाब देता है, पर उसकी आवाज़ कांप रही है, उसके हाथ पसीने से तर हैं। तभी, बातचीत के दौरान, पुलिसवाले आपस में उस दोहरे हत्याकांड का ज़िक्र करते हैं – अलयोना इवानोव्ना और उसकी बहन लिज़ावेता की क्रूर हत्या। जैसे ही हत्या का ज़िक्र होता है, रास्कोलनिकोव का संयम जवाब दे जाता है। उसके सामने वह ख़ूनी मंज़र घूम जाता है, और वह वहीं पुलिस स्टेशन में बेहोश होकर गिर जाता है। यह बेहोशी उसके अपराध-बोध का सबसे पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था। हालाँकि पुलिसवाले इसे उसकी बीमारी या कमज़ोरी समझते हैं, पर एक तेज़ तर्रार जांच अधिकारी, पोरफ़िरी पेत्रोविच (जिससे उसकी मुलाक़ात आगे होनी है) के लिए यह घटना भविष्य में शक का एक महत्वपूर्ण बीज बो देती। आप सोचिए, जिस अपराध को उसने इतने ठंडे दिमाग़ से करने की योजना बनाई थी, उसी अपराध का ज़िक्र मात्र उसे बेहोश कर देता है! उसका शरीर और मन उसके सिद्धांत के ख़िलाफ़ गवाही दे रहे थे। होश आने पर वह किसी तरह वहाँ से निकलता है, पर अब वह पहले से भी ज़्यादा भयभीत और बेचैन है। उसे लगता है जैसे हर कोई उसे शक की निगाह से देख रहा है। उसकी बीमारी और अजीब व्यवहार से चिंतित होकर, उसका एकमात्र सच्चा मित्र, दिमित्री प्रोकोफिच राज़ुमीखिन, उसकी देखभाल के लिए आता है। राज़ुमीखिन एक भला, मेहनती और ज़िंदादिल नौजवान है, जो रास्कोलनिकोव की हालत देखकर परेशान हो जाता है। वह डॉक्टर को लाता है, उसके खाने-पीने का इंतज़ाम करता है, और घंटों उसके पास बैठकर बातें करता है, उसे बहलाने की कोशिश करता है। रास्कोलनिकोव उसकी दोस्ती और देखभाल के लिए आभारी तो है, पर साथ ही उसे राज़ुमीखिन से भी भय लगता है। उसे लगता है कि कहीं बातों-बातों में वह अपना राज़ न उगल दे। राज़ुमीखिन उससे हत्या के बारे में भी बात करता है, क्योंकि यह शहर की सबसे सनसनीखेज़ ख़बर थी, और बताता है कि पुलिस को शक है कि हत्या में किसी बाहरी व्यक्ति का नहीं, बल्कि किसी ग्राहक का ही हाथ हो सकता है। राज़ुमीखिन अनजाने में ही ऐसी बातें कह जाता है जो रास्कोलनिकोव के शक और भय को और बढ़ा देती हैं। उदाहरण के लिए, वह बताता है कि हत्या के वक़्त पास के एक खाली अपार्टमेंट में कुछ पेंटर्स काम कर रहे थे, जिनमें से एक निकोलाय ने बाद में हत्या का झूठा इक़बाल भी कर लिया था (हालाँकि जांच अधिकारी को उस पर यकीन नहीं था)। यह सुनकर रास्कोलनिकोव को कुछ राहत मिलती है, पर उसका संदेह पूरी तरह ख़त्म नहीं होता। वह राज़ुमीखिन की मौजूदगी में असहज महसूस करता है, उसे लगता है जैसे उसका दोस्त उसकी आत्मा के आर-पार देख सकता है। उसका मन लगातार उसे कहता रहता है, "सब जानते हैं, सब जानते हैं!" वह लोगों से, बातचीत से, सामान्य जीवन से कटने लगता है। उसका अकेलापन और गहरा हो जाता है। एक अजीब सी, अनियंत्रित इच्छा उसे वापस अपराध स्थल की ओर खींचती है। वह खुद को रोक नहीं पाता और अलयोना इवानोव्ना के उस अपार्टमेंट के पास पहुँच जाता है। वह देखता है कि वहाँ सफ़ाई चल रही है, मज़दूर काम कर रहे हैं। वह उनसे अजीबोगरीब सवाल पूछता है, ख़ून के निशानों के बारे में पूछता है, जैसे वह जानबूझकर शक को अपनी ओर खींचना चाहता हो। यह उसके अंदर चल रहे तूफ़ान का एक और सबूत था – एक हिस्सा अपराध को छिपाना चाहता था, दूसरा हिस्सा पकड़े जाने के लिए, इस बोझ से मुक्त होने के लिए तड़प रहा था। इसी उथल-पुथल भरे समय में, एक और त्रासद घटना घटती है। रास्कोलनिकोव रोड पर चलते हुए देखता है कि एक कार ने एक व्यक्ति को बुरी तरह घायल कर दिया है। पास जाकर देखने पर वह स्तब्ध रह जाता है – वह घायल व्यक्ति सेम्योन ज़ख़ारोविच मार्मेलादोव था, वही शराबी जिससे वह कुछ दिन पहले मधुशाला में मिला था। रास्कोलनिकोव तुरंत मदद के लिए आगे आता है। वह क्राउड को व्यवस्थित करता है, डोक्टर बुलाने को कहता है, और मार्मेलादोव को उसके घर पहुँचाने में मदद करता है। मार्मेलादोव बुरी तरह ज़ख़्मी है, उसकी हालत नाज़ुक है। उसके घर पर फिर वही दिल दहला देने वाला मंज़र है – उसकी पत्नी कतेरीना इवानोव्ना का विलाप, भूखे, सहमे हुए बच्चे, और চরম ग़रीबी। मार्मेलादोव अपनी अंतिम सांसें ले रहा है। वह अपनी बेटी सोन्या को बुलाने के लिए कहता है। सोन्या आती है – वही सोन्या जो अपने परिवार के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा चुकी है। वह अपने पिता की हालत देखकर टूट जाती है। मार्मेलादोव उससे माफ़ी मांगता है, ईश्वर से दया की भीख मांगता है, और सोन्या की गोद में दम तोड़ देता है। यह मृत्यु, यह दर्द , यह बेबसी देखकर रास्कोलनिकोव अंदर तक हिल जाता है। वह जो पैसा उसने वृद्धा से चुराया था (हालाँकि उसने उसे अभी तक इस्तेमाल नहीं किया था), उसमें से नहीं, बल्कि अपनी माँ द्वारा भेजे गए थोड़े से पैसों में से लगभग सारे पैसे – बीस रूबल – वह मार्मेलादोव के अंतिम संस्कार और परिवार की मदद के लिए कतेरीना इवानोव्ना को दे देता है। वह कहता है कि यह मार्मेलादोव का क़र्ज़ था जो वह चुका रहा है। यह कृत्य, एक हत्यारे का यह दयालुता का कार्य, कितना विरोधाभासी है! एक तरफ उसने दो जानें ली थीं, दूसरी तरफ वह एक मरते हुए व्यक्ति के परिवार की मदद कर रहा था। क्या यह उसके अंदर बची हुई मानवता का सबूत था? या यह भी उसके अपराध-बोध को कम करने का एक तरीका? इस घटना के माध्यम से उसका सोन्या से एक गहरा, अघोषित रिश्ता कायम होता है। सोन्या उसकी इस अप्रत्याशित मदद के लिए कृतज्ञ है, और रास्कोलनिकोव को सोन्या की आँखों में पहली बार बिना किसी निर्णय के, सिर्फ़ गहरी उदासी और समझ दिखाई देती है। उसे महसूस होता है कि शायद सोन्या ही वह इंसान है जो उसे समझ सकती है। लेकिन क्या वह कभी सोन्या को अपने भयानक राज़ के बारे में बता पाएगा? क्या सोन्या जैसी पवित्र आत्मा एक हत्यारे को स्वीकार कर पाएगी? यह सवाल उसके मन में एक और उलझन पैदा कर देता है। इस पूरे भाग में, रास्कोलनिकोव एक जीवित नरक से गुज़र रहा है। उसका शरीर बीमार है, उसका मन भय और संदेह से ग्रस्त है, और उसका ज़मीर उसे लगातार कचोट रहा है। उसका महान सिद्धांत हवा हो चुका है, और वह बस एक डरा हुआ, अकेला इंसान रह गया है जो अपने ही किए की छाया से भाग रहा है। पुलिस की जांच धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है, और रास्कोलनिकोव का हर असामान्य व्यवहार उसे शक के दायरे में ला रहा है, भले ही उसे अभी इसका स्पष्ट अहसास न हो। मार्मेलादोव की मृत्यु और सोन्या से बढ़ती नज़दीकी उसके जीवन में एक नया मोड़ लाती है, लेकिन क्या यह मोड़ उसे मुक्ति की ओर ले जाएगा या और गहरे अँधेरे में? उसका अपराध-बोध उसे किस हद तक ले जाएगा? क्या वह टूट जाएगा और अपना गुनाह कबूल कर लेगा? या वह अपने सिद्धांत पर क़ायम रहने की कोशिश करेगा, चाहे उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो? यह आंतरिक संघर्ष और बाहरी ख़तरे की तलवार उसके सिर पर लगातार लटक रही है। इस ओडियोबुक के दूसरे भाग में आपने देखा कि कैसे अपराध करने के बाद रास्कोलनिकोव का जीवन एक भयानक दुःस्वप्न में बदल गया। उसका सिद्धांत धराशायी हो गया और अपराध-बोध ने उसे बीमार और भयभीत कर दिया। आपने यह भी देखा कि कैसे मार्मेलादोव की मृत्यु ने उसे सोन्या के क़रीब ला दिया। अब, इस भाग के अंत में, मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए और महसूस कीजिए उस अपराध-बोध यानि guilt को, जो रास्कोलनिकोव महसूस कर रहा है। क्या आपको लगता है कि कोई भी इंसान, चाहे वह खुद को कितना भी असाधारण क्यों न समझता हो, अपराध करने के बाद उसके बोझ से बच सकता है? क्या ज़मीर की आवाज़ को दबाया जा सकता है? नीचे कमेंट सेक्शन में हमें बताएं कि आपके विचार में अपराध-बोध इंसान पर क्या असर डालता है और क्या रास्कोलनिकोव का सोन्या के परिवार की मदद करना उसके अपराध को किसी भी तरह से कम करता है? आपके विचारों का हमें इंतज़ार रहेगा, और अगले भाग में हम देखेंगे कि रास्कोलनिकोव की माँ और बहन के आने से कहानी क्या मोड़ लेती है। भाग 3: परिवार का आगमन और जांच का दबाव जिस वक़्त रास्कोलनिकोव अपने अपराध बोध, बीमारी और मार्मेलादोव परिवार की त्रासदी से जूझ रहा था, उसी वक़्त सेंट पीटर्सबर्ग की धूल भरी, गर्म हवाओं के बीच दो औरतें – उसकी माँ पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना और उसकी बहन अवदोत्या रोमानोव्ना यानि दुन्या – उससे मिलने के लिए लम्बा सफ़र तय करके शहर पहुँचती हैं। उनके मन में अपने प्यारे रोद्या यानि रास्कोलनिकोव के लिए चिंता और उम्मीदें भरी हैं। वे सोच रही थीं कि उनका बेटा, उनका भाई, शायद ग़रीबी से परेशान होगा, लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि वह किस मानसिक और आत्मिक नरक से गुज़र रहा है। उनका आगमन रास्कोलनिकोव के लिए एक अजीब सी स्थिति पैदा कर देता है। एक तरफ, अपनी माँ और बहन के लिए उसके मन में गहरा प्यार और सम्मान है, जिनकी ख़ातिर ही उसने आंशिक रूप से यह भयानक क़दम उठाने का सोचा था। दूसरी तरफ, उनकी मौजूदगी उसे और ज़्यादा असहज कर देती है। वह उनसे कैसे नज़रें मिलाएगा? वह अपनी इस घबराहट, इस बीमारी, इस अंदरूनी उथल-पुथल को उनसे कैसे छिपाएगा? उनका प्यार, उनकी चिंता अब उसे एक बोझ सी लगने लगती है, क्योंकि वह जानता है कि वह उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, बल्कि उसने तो एक ऐसा रास्ता चुन लिया है जो उन्हें सिर्फ़ दुख और अपमान ही दे सकता है। जब वे उसके छोटे, गंदे कमरे में क़दम रखती हैं और उसकी हालत देखती हैं – उसका पीला चेहरा, उसकी कमज़ोरी, उसकी आँखों में तैरता अजीब सा भय – तो उनका दिल बैठ जाता है। पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना अपनी ममता भरी आँखों से उसे देखती है, उसकी बीमारी के लिए चिंतित होती है, जबकि दुन्या, जो मजबूत इरादों वाली और समझदार है, महसूस करती है कि बात सिर्फ़ शारीरिक बीमारी से कहीं ज़्यादा गहरी है। वह अपने भाई के व्यवहार में एक भयावह बदलाव महसूस करती है, एक दूरी, एक छिपाव, जो उसे बेचैन कर देता है। इस पारिवारिक पुनर्मिलन की असहजता और तनाव उस वक़्त और बढ़ जाता है जब दुन्या का मंगेतर, प्योत्र पेत्रोविच लूज़िन, भी उनसे मिलने आता है। लूज़िन एक अधेड़ उम्र का, अपनी अमीरी और सामाजिक स्थिति पर इतराने वाला, संकीर्ण सोच का व्यक्ति है। वह रास्कोलनिकोव और उसके परिवार से ऐसे मिलता है जैसे कोई एहसान कर रहा हो। वह अपनी योजनाओं, अपने पैसे और अपने भविष्य के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है, और साफ़ ज़ाहिर करता है कि वह दुन्या से शादी करके उस पर और उसके परिवार पर उपकार कर रहा है। रास्कोलनिकोव, जो पहले से ही लूज़िन के प्रति अपनी बहन की क़ुरबानी के विचार से नफ़रत करता था, उसे सामने देखकर और भी ज़्यादा क्रोधित हो जाता है। लूज़िन का अहंकार, उसका रास्कोलनिकोव के प्रति तिरस्कारपूर्ण रवैया, और उसकी माँ और बहन के प्रति उसका संरक्षण जताने वाला व्यवहार, रास्कोलनिकोव के जले पर नमक छिड़कने जैसा काम करता है। उनके बीच की पहली मुलाक़ात ही भयंकर तनावपूर्ण होती है। रास्कोलनिकोव लूज़िन की बातों को काटता है, उस पर ताने कसता है, और साफ़ तौर पर अपनी नापसंदगी ज़ाहिर कर देता है। वह अपनी बहन को चेतावनी देता है कि यह आदमी उसके लायक नहीं है, कि यह शादी एक सौदा है, प्यार नहीं। लूज़िन भी रास्कोलनिकोव के इस रवैये से अपमानित महसूस करता है और उनके बीच एक तीखी बहस छिड़ जाती है। पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना बीच-बचाव करने की कोशिश करती है, वह अपने बेटे और होने वाले दामाद, दोनों को शांत करना चाहती है, पर स्थिति बिगड़ जाती है। दुन्या एक मुश्किल स्थिति में फंस जाती है – एक तरफ उसका भाई है, जिसे वह बेहद प्यार करती है, और दूसरी तरफ उसका मंगेतर, जिसके साथ उसने अपने और अपने भाई के भविष्य को सुरक्षित करने का सपना देखा था। लूज़िन गुस्से में यह अल्टीमेटम यानि अंतिम चेतावनी देकर चला जाता है कि या तो दुन्या अपने भाई से दूरी बना ले, या फिर रिश्ता ख़त्म समझे। यह घटना रास्कोलनिकोव के मन में चल रहे द्वंद्व को और तेज़ कर देती है। उसे लगता है कि उसने अपनी बहन की ज़िंदगी बर्बाद कर दी है, लेकिन साथ ही उसे इस बात से एक अजीब सा संतोष भी मिलता है कि उसने लूज़िन जैसे आदमी का असली चेहरा सामने ला दिया। इसी दौरान, रास्कोलनिकोव का वफ़ादार दोस्त राज़ुमीखिन उसकी माँ और बहन के लिए एक मज़बूत सहारा बनकर सामने आता है। वह न सिर्फ़ रास्कोलनिकोव की देखभाल करता है, बल्कि पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना और दुन्या का भी पूरा ख़याल रखता है। वह उनके रहने का इंतज़ाम करता है, शहर में उनकी मदद करता है, और सबसे महत्वपूर्ण बात, वह रास्कोलनिकोव का पक्ष लेता है, उसकी अजीब हरकतों को उसकी बीमारी का नतीजा बताने की कोशिश करता है। राज़ुमीखिन पहली नज़र में ही दुन्या की ख़ूबसूरती, उसकी समझदारी और उसकी आत्म-सम्मान की भावना से प्रभावित हो जाता है और मन ही मन उसे चाहने लगता है। वह लूज़िन को बिलकुल पसंद नहीं करता और रास्कोलनिकोव के विरोध का समर्थन करता है। राज़ुमीखिन की मौजूदगी उस तनाव भरे माहौल में थोड़ी राहत लाती है। वह अपनी बातों से, अपनी ज़िंदादिली से पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना का मन बहलाने की कोशिश करता है, और दुन्या को भी हिम्मत बंधाता है। लेकिन राज़ुमीखिन भी रास्कोलनिकोव के गहरे रहस्य से अनजान है। वह बस यही समझता है कि उसका दोस्त ग़रीबी, बीमारी और भविष्य की चिंता के कारण परेशान है। वह नहीं जानता कि रास्कोलनिकोव के कंधों पर दो हत्याओं का असहनीय बोझ है। रास्कोलनिकोव अपने दोस्त की इस वफ़ादारी और मदद के लिए कृतज्ञ तो है, पर यह कृतज्ञता भी उसे और ज़्यादा अकेला महसूस कराती है, क्योंकि वह जानता है कि अगर राज़ुमीखिन को सच्चाई पता चल गयी, तो शायद वह उससे नफ़रत करने लगेगा। और फिर कहानी में प्रवेश होता है एक ऐसे किरदार का जो रास्कोलनिकोव के जीवन में भूचाल लाने वाला है – जांच अधिकारी, पोरफ़िरी पेत्रोविच। पोरफ़िरी रिश्ते में राज़ुमीखिन का दूर का संबंधी है और राज़ुमीखिन ही रास्कोलनिकोव को उससे मिलवाने ले जाता है, यह सोचकर कि शायद पोरफ़िरी रास्कोलनिकोव की खोई हुई गिरवी रखी चीज़ों को वापस पाने में मदद कर सके। पोरफ़िरी पेत्रोविच कोई साधारण पुलिस अधिकारी नहीं है। वह बेहद चतुर, मनोवैज्ञानिक समझ रखने वाला और इंसानी फितरत का गहरा जानकार है। वह उस दोहरे हत्याकांड की जांच कर रहा है और रास्कोलनिकोव के पुलिस स्टेशन में बेहोश होने की घटना उसके ध्यान में आ चुकी है। उसे रास्कोलनिकोव का लिखा हुआ एक पुराना लेख भी याद है, जो उसने छात्र जीवन में लिखा था, जिसमें उसने उन्हीं 'साधारण' और 'असाधारण' लोगों के सिद्धांत की बात की थी, जो अब रास्कोलनिकोव के अपराध का आधार बना था। पोरफ़िरी रास्कोलनिकोव से मिलता है, और उनकी मुलाक़ात एक औपचारिक पूछताछ कम, और एक मनोवैज्ञानिक दिमागी खेल यानि mind game ज़्यादा लगती है। पोरफ़िरी सीधे-सीधे कोई आरोप नहीं लगाता, वह बस बातें करता है – अपराध के बारे में, मनोविज्ञान के बारे में, रास्कोलनिकोव के लेख के बारे में। वह बहुत ही चालाकी से, घुमा-फिराकर ऐसे सवाल पूछता है, ऐसी टिप्पणियाँ करता है, जो सीधे रास्कोलनिकोव के अपराध-बोध और उसके सिद्धांत पर चोट करती हैं। वह रास्कोलनिकोव को उकसाता है, उसे गुस्सा दिलाता है, उसकी प्रतिक्रियाओं को बड़ी बारीकी से देखता है। रास्कोलनिकोव समझ जाता है कि पोरफ़िरी को उस पर शक है, और वह अपनी पूरी कोशिश करता है कि शांत रहे, सामान्य दिखे, पर पोरफ़िरी की तीक्ष्ण नज़रें और उसके मनोवैज्ञानिक दांव-पेंच रास्कोलनिकोव को अंदर तक हिला देते हैं। वह महसूस करता है जैसे पोरफ़िरी उसके दिमाग़ के अंदर झाँक रहा है, उसके हर झूठ को पकड़ रहा है। यह मुलाक़ात रास्कोलनिकोव के ऊपर जांच के दबाव को कई गुना बढ़ा देती है। अब उसे सिर्फ़ अपने ज़मीर से ही नहीं, बल्कि एक चालाक और अनुभवी जांच अधिकारी से भी निपटना है। क्या पोरफ़िरी के पास कोई सबूत है? या वह सिर्फ़ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर रास्कोलनिकोव को अपना गुनाह क़बूल करवाना चाहता है? रास्कोलनिकोव इस अनिश्चितता और भय के साथ वहां से लौटता है, उसे लगता है जैसे शिकंजा कसता जा रहा है। परिवार का आगमन, लूज़िन के साथ टकराव, राज़ुमीखिन की दोस्ती और पोरफ़िरी पेत्रोविच द्वारा शुरू किया गया मनोवैज्ञानिक युद्ध – यह सब मिलकर रास्कोलनिकोव को एक ऐसे मोड़ पर ले आते हैं जहाँ उसके लिए सामान्य जीवन जीना लगभग असंभव हो जाता है। वह अपनी माँ और बहन के सामने सामान्य दिखने की कोशिश करता है, पर उसका पीला चेहरा, उसकी कांपती आवाज़, उसके अचानक आने वाले गुस्से के दौरे, और उसका रहस्यमयी व्यवहार सबको चिंतित कर देता है। वह कभी घंटों ख़ामोश बैठा रहता है, तो कभी अचानक उत्तेजित होकर घर से बाहर भाग जाता है। उसका अपराध बोध अब सिर्फ़ रात के अंधेरे में या अकेलेपन में नहीं, बल्कि दिन के उजाले में, अपने प्रियजनों के सामने भी उसे सताने लगा है। जांच का दबाव बढ़ रहा है, परिवार की उम्मीदों का बोझ है, और अंदर ज़मीर की लगातार चुभन है। रास्कोलनिकोव एक ऐसे जाल में फंस चुका है जिससे निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा। क्या वह इस दबाव में टूट जाएगा? क्या पोरफ़िरी उसे क़बूल करने पर मजबूर कर देगा? या वह अभी भी अपने आप को बचाने की कोई तरकीब निकाल लेगा? और उसकी माँ और बहन का क्या होगा, जब उन्हें सच्चाई पता चलेगी? कहानी अब एक और ज़्यादा तनावपूर्ण मोड़ पर पहुँच चुकी है, जहाँ हर अगला क़दम रास्कोलनिकोव को या तो मुक्ति की ओर ले जा सकता है, या फिर अंतिम पतन की ओर। इस भाग में आपने महसूस किया कि कैसे रास्कोलनिकोव का जीवन बाहरी दबावों – परिवार का आगमन और जांच की शुरुआत – के कारण और ज़्यादा जटिल हो गया। उसका आंतरिक संघर्ष अब बाहरी दुनिया से सीधे टकरा रहा है। पोरफ़िरी पेत्रोविच के रूप में उसे एक खतरनाक प्रतिद्वंद्वी मिला है। इस अध्याय में आपने जो तनाव और दबाव महसूस किया, उसे ध्यान में रखते हुए मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, जब कोई इंसान अपराध बोध से गुज़र रहा हो, तो क्या उसके प्रियजनों का प्यार और चिंता उसे सहारा देते हैं, या वे उसके बोझ को और बढ़ा देते हैं? क्या अपनों के सामने सच छिपाना, अपराध करने से भी ज़्यादा मुश्किल होता है? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि आपके विचार में रास्कोलनिकोव के लिए अपनी माँ और बहन का आना अच्छा हुआ या बुरा? और क्या आपको लगता है कि पोरफ़िरी पेत्रोविच सिर्फ शक के आधार पर रास्कोलनिकोव को पकड़ पाएगा? आपके विचारों का हमें इंतज़ार है। अगले भाग में हम देखेंगे कि यह मनोवैज्ञानिक खेल और पारिवारिक तनाव कहानी को कहाँ ले जाता है। भाग 4: नए किरदार, खुलासे और मनोवैज्ञानिक द्वंद्व रास्कोलनिकोव का जीवन अब एक ऐसे चौराहे पर आ खड़ा था, जहाँ हर दिशा अँधेरे और अनिश्चितता में गुम होती नज़र आ रही थी। एक तरफ उसकी माँ और बहन का प्यार और उनकी चिंता उसे कचोट रही थी, दूसरी तरफ पोरफ़िरी पेत्रोविच का मनोवैज्ञानिक जाल कसता जा रहा था, और इन सबके बीच उसका अपना ज़मीर उसे पल-पल जला रहा था। इसी उथल-पुथल के बीच, कहानी में एक और रहस्यमयी और खतरनाक किरदार का प्रवेश होता है – अर्कादी इवानोविच स्विद्रिगाइलोव। यह वही व्यक्ति है जिसकी वजह से दुन्या को अतीत में अपमान और पीड़ा झेलनी पड़ी थी, जब वह उसके घर में गवर्नेस का काम करती थी। स्विद्रिगाइलोव दुन्या का पूर्व मालिक था, एक अमीर, अय्याश और नैतिक रूप से भ्रष्ट व्यक्ति, जिस पर अपनी पत्नी मारफ़ा पेत्रोव्ना (जिसकी हाल ही में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हुई है) को सताने और शायद उसकी मृत्यु में हाथ होने का भी शक था। वह अचानक सेंट पीटर्सबर्ग पहुँचता है और रास्कोलनिकोव से संपर्क साधता है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक है, उसकी बातों में दोहरा मतलब झलकता है, और उसका व्यवहार अप्रत्याशित है। वह रास्कोलनिकोव से कहता है कि वह दुन्या के भले के लिए आया है, कि वह लूज़िन से उसकी शादी नहीं होने देना चाहता, और वह दुन्या को अपनी मृत पत्नी की वसीयत से मिले पैसों में से दस हज़ार रूबल देना चाहता है ताकि वह लूज़िन के एहसानों से आज़ाद हो सके। लेकिन उसकी मंशा नेक नहीं लगती। उसकी बातों से, उसकी नज़रों से साफ़ पता चलता है कि वह अब भी दुन्या के प्रति आसक्त है और उसकी मंशा कुछ और ही है। रास्कोलनिकोव को स्विद्रिगाइलोव से तीव्र घृणा होती है, वह उसे अपनी बहन के आस-पास भी नहीं फटकने देना चाहता। लेकिन स्विद्रिगाइलोव की बातों में कुछ ऐसा है जो रास्कोलनिकोव को बेचैन कर देता है। स्विद्रिगाइलोव ऐसे संकेत देता है जैसे वह रास्कोलनिकोव के बारे में कुछ जानता है, कोई गहरा राज़। क्या यह सिर्फ़ उसका वहम है, या स्विद्रिगाइलोव सचमुच कुछ जानता है? इस नए ख़तरे की आहट रास्कोलनिकोव की मुसीबतों को और बढ़ा देती है। उसे लगता है जैसे वह चारों ओर से घिरता जा रहा है। इसी बीच, वह निर्णायक घड़ी भी आ जाती है जिसका सबको इंतज़ार था – लूज़िन के साथ अंतिम मुलाक़ात। लूज़िन ने पहले ही अल्टीमेटम दे दिया था कि रास्कोलनिकोव उस मुलाक़ात में शामिल नहीं होना चाहिए। लेकिन रास्कोलनिकोव जानबूझकर राज़ुमीखिन के साथ वहाँ पहुँच जाता है, अपनी माँ और बहन का साथ देने के लिए और लूज़िन का सामना करने के लिए। कमरा तनाव से भरा हुआ है। लूज़िन अपने अहंकार में चूर, सबको अपनी आर्थिक ताकत और सामाजिक रुतबे का रौब दिखाने की कोशिश करता है। वह पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना और दुन्या से ऐसे बात करता है जैसे वे उसकी संपत्ति हों। वह रास्कोलनिकोव के वहाँ होने पर आपत्ति जताता है और बहस शुरू हो जाती है। लूज़िन अपनी संकीर्ण सोच और स्वार्थ का खुलकर प्रदर्शन करता है। वह कहता है कि उसने दुन्या जैसी ग़रीब लड़की को चुनकर एहसान किया है और उसे उसकी हर बात माननी चाहिए। वह रास्कोलनिकोव पर अपने परिवार को बर्बाद करने का आरोप लगाता है। लेकिन इस बार दुन्या चुप नहीं रहती। उसका आत्म-सम्मान जाग उठता है। वह देखती है कि लूज़िन कितना छोटा और घिनौना आदमी है। वह दृढ़ता से, बिना किसी हिचकिचाहट के, लूज़िन से शादी करने से इंकार कर देती है। वह कहती है कि वह अपने भाई को नहीं छोड़ेगी और ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकती जो उसके परिवार का अपमान करे। पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना भी अपनी बेटी का साथ देती है। राज़ुमीखिन खुलकर रास्कोलनिकोव और दुन्या का पक्ष लेता है। लूज़िन अपमानित होकर, गुस्से में बड़बड़ाता हुआ, भविष्य में बदला लेने की धमकी देता हुआ वहाँ से चला जाता है। लूज़िन के जाने के बाद माहौल में थोड़ी शांति आती है, पर एक अनिश्चितता भी है। दुन्या ने अपनी आज़ादी तो चुन ली, पर अब उनका भविष्य क्या होगा? रास्कोलनिकोव को एक पल के लिए राहत मिलती है कि उसकी बहन उस बुरे आदमी से बच गयी, पर अगले ही पल उसे अपराध बोध घेर लेता है – क्या उसकी वजह से ही उसकी बहन का भविष्य अंधकारमय हो गया है? राज़ुमीखिन इस मौके का फ़ायदा उठाकर उनके साथ मिलकर एक प्रकाशन यानि पब्लिशिंग का काम शुरू करने का प्रस्ताव रखता है, ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें। यह एक उम्मीद की किरण जैसा लगता है, पर रास्कोलनिकोव जानता है कि वह किसी भी सामान्य काम या सामान्य जीवन का हिस्सा नहीं बन सकता, जब तक कि उसका रहस्य अनसुलझा है। अपने अंदर के बढ़ते बोझ और अकेलेपन से व्याकुल होकर, रास्कोलनिकोव एक बार फिर सोन्या मार्मेलादोवा के पास जाता है। उसे नहीं पता कि वह वहाँ क्यों जा रहा है – क्या वह उससे सहानुभूति चाहता है, क्या वह उसके सामने अपना गुनाह क़बूल करना चाहता है, या वह बस किसी ऐसे इंसान के पास जाना चाहता है जो उसकी पीड़ा को समझ सके? सोन्या अपने छोटे से, साफ़-सुथरे कमरे में रहती है, जो उसकी पवित्रता और सादगी का प्रतीक है, भले ही उसका पेशा समाज की नज़रों में कितना भी गिरा हुआ क्यों न हो। रास्कोलनिकोव उसके सामने बैठता है, और उनके बीच एक अजीब, गहरा संवाद शुरू होता है। वह सोन्या से उसके जीवन के बारे में पूछता है, उसकी आस्था के बारे में पूछता है। वह उसे उकसाता है, पूछता है कि क्या भगवान ने उसके साथ न्याय किया है? वह उसके विश्वास पर सवाल उठाता है। लेकिन सोन्या अपनी गहरी आस्था और विनम्रता से उसके सवालों का जवाब देती है। उसकी आँखों में अथाह पीड़ा है, पर साथ ही एक अटूट विश्वास भी है। वह कहती है कि ईश्वर ही उसका एकमात्र सहारा है। रास्कोलनिकोव उससे बाइबिल से लाज़रस के पुनर्जीवित होने की कहानी पढ़ने को कहता है – एक मरे हुए व्यक्ति का वापस जीवन पाना। जैसे-जैसे सोन्या कांपती हुई आवाज़ में वह कहानी पढ़ती है, रास्कोलनिकोव को लगता है जैसे वह कहानी उसी के लिए है। क्या वह भी, जो नैतिक और आत्मिक रूप से मर चुका है, कभी पुनर्जीवित हो सकेगा? सोन्या की निःस्वार्थता, उसकी गहरी पीड़ा सहने की क्षमता, और उसकी अटूट आस्था रास्कोलनिकोव को भीतर तक छू जाती है। उसे लगता है कि सोन्या में एक ऐसी शक्ति है जो शायद उसे बचा सकती है। वह लगभग अपना गुनाह क़बूल करने ही वाला होता है, पर कर नहीं पाता। वह बस इतना कहता है कि वह उसे बताएगा कि लिज़ावेता का हत्यारा कौन है। वह सोन्या से वादा लेता है कि वह अगले दिन फिर आएगा। इस मुलाक़ात से रास्कोलनिकोव को थोड़ी शांति मिलती है, पर उसका द्वंद्व और गहरा हो जाता है। उसे सोन्या में मुक्ति का रास्ता दिखता है, पर उस रास्ते पर चलने के लिए उसे अपने अपराध को स्वीकार करना होगा, जिसका साहस वह अभी जुटा नहीं पा रहा है। और उसे यह भी नहीं पता कि उनके इस संवाद को कोई और भी सुन रहा है – सोन्या के कमरे के बगल वाले कमरे में स्विद्रिगाइलोव मौजूद है, जो दीवार के पतले होने का फ़ायदा उठाकर उनकी सारी बातें सुन लेता है। इसके तुरंत बाद, रास्कोलनिकोव का सामना एक बार फिर पोरफ़िरी पेत्रोविच से होता है। इस बार पोरफ़िरी उसे अपने ऑफिस बुलाता है। यह मुलाक़ात पहले से भी ज़्यादा तनावपूर्ण और मनोवैज्ञानिक रूप से थका देने वाली होती है। पोरफ़िरी अब लगभग निश्चित है कि रास्कोलनिकोव ही हत्यारा है, पर उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं है। इसलिए वह मनोवैज्ञानिक दबाव की अपनी रणनीति को चरम पर ले जाता है। वह रास्कोलनिकोव के साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेलता है। वह कहता है कि उसके पास एक 'सरप्राइज' यानि अचरज भरी चीज़ है, वह संकेत देता है कि वह सब कुछ जानता है, वह रास्कोलनिकोव के सिद्धांत की खिल्ली उड़ाता है, उसे बताता है कि अपराधी हमेशा मनोवैज्ञानिक रूप से कैसे टूटता है, कैसे वह खुद ही अपने ख़िलाफ़ सबूत छोड़ जाता है। वह लगभग रास्कोलनिकोव को क़बूल करने के बिंदु तक ले आता है। रास्कोलनिकोव का संयम टूटने लगता है, उसका चेहरा पसीने से भीग जाता है, उसकी आँखें भय से फैल जाती हैं। वह लगभग चिल्लाने ही वाला होता है, क़बूल करने ही वाला होता है, कि तभी अचानक दरवाज़ा खुलता है और एक अप्रत्याशित घटना घटती है। वही पेंटर, निकोलाय, जिसे पहले हत्या के शक में पकड़ा गया था और छोड़ दिया गया था, भागता हुआ अंदर आता है और चिल्लाकर कहता है, "हत्यारा मैं हूँ! मैंने ही उन औरतों को मारा है!" यह एक धमाके जैसा होता है। पोरफ़िरी भौंचक्का रह जाता है। रास्कोलनिकोव को विश्वास नहीं होता। क्या यह सच है? या यह कोई और चाल है? पोरफ़िरी निकोलाय को शांत करता है, पर उसका ध्यान अब पूरी तरह से रास्कोलनिकोव से हटकर निकोलाय पर चला जाता है। रास्कोलनिकोव को वहाँ से जाने का मौका मिल जाता है। वह बाहर निकलता है, उसका सिर घूम रहा है। क्या वह बच गया? क्या निकोलाय ने उसे बचा लिया? या यह सिर्फ़ कुछ समय की राहत है? उसे कुछ समझ नहीं आता। वह शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह निचुड़ चुका है। लेकिन पोरफ़िरी की आँखों में जो निश्चितता उसने देखी थी, वह उसे भूल नहीं पाता। वह जानता है कि पोरफ़िरी अब भी उसे ही असली अपराधी मानता है, निकोलाय के क़बूलनामे के बावजूद। यह घटना उसे क्षणिक राहत तो देती है, पर उसके मन की शांति को और भंग कर देती है। वह जानता है कि तलवार अभी भी उसके सिर पर लटक रही है। भाग 4 रास्कोलनिकोव को और गहरे संकट में धकेल देता है। स्विद्रिगाइलोव का ख़तरा उस पर मंडरा रहा है, जो शायद उसका राज़ जानता है। लूज़िन का अध्याय ख़त्म हो गया है, पर परिवार का भविष्य अनिश्चित है। सोन्या के रूप में उसे आशा की एक किरण दिखी है, पर वह उसे अपनाने से हिचक रहा है। पोरफ़िरी पेत्रोविच ने उसे लगभग तोड़ ही दिया था, पर एक अप्रत्याशित घटना ने उसे बचा लिया – लेकिन कब तक? और अब एक नया सवाल खड़ा हो गया है: निकोलाय ने हत्या का इल्ज़ाम अपने सर क्यों लिया? क्या वह सच बोल रहा है, या इसके पीछे कोई और वज़ह है? रास्कोलनिकोव अब भी अपने अपराध के बोझ तले दबा हुआ है, और बाहरी दुनिया के ख़तरे उसे लगातार घेर रहे हैं। क्या वह स्विद्रिगाइलोव के जाल से बच पाएगा? क्या वह सोन्या के सामने अपना दिल खोल पाएगा? और पोरफ़िरी अगला क़दम क्या उठाएगा? कहानी एक ऐसे रोमांचक मोड़ पर है जहाँ कुछ भी हो सकता है। इस ओडियोबुक के चौथे भाग में आपने देखा कि कैसे रास्कोलनिकोव का सामना नए ख़तरों और पुरानी सच्चाइयों से हुआ। स्विद्रिगाइलोव की रहस्यमयी उपस्थिति और पोरफ़िरी के मनोवैज्ञानिक दांव-पेंच ने उसे लगभग तोड़ ही दिया था। इस अध्याय में आपने जिस मनोवैज्ञानिक दबाव और बाहरी ख़तरों को महसूस किया, उसे ध्यान में रखते हुए मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, क्या बाहरी सबूतों के बिना भी, सिर्फ़ मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर किसी को अपराध क़बूल करने पर मजबूर किया जा सकता है? पोरफ़िरी पेत्रोविच जिस तरीके का इस्तेमाल कर रहा है, क्या वह नैतिक रूप से सही है? और स्विद्रिगाइलोव जैसे किरदार, जो नैतिक रूप से गिरे हुए हैं, क्या वे कभी किसी का भला कर सकते हैं, या उनकी हर चाल के पीछे सिर्फ़ स्वार्थ ही छिपा होता है? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि आप पोरफ़िरी की जांच तकनीक और स्विद्रिगाइलोव के इरादों के बारे में क्या सोचते हैं। हमें आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा। भाग 5: लूज़िन का षड्यंत्र और सोन्या से स्वीकारोक्ति पिछले भाग के अंत में निकोलाय के अप्रत्याशित क़बूलनामे ने रास्कोलनिकोव को पोरफ़िरी पेत्रोविच के मनोवैज्ञानिक शिकंजे से एक अस्थायी राहत तो ज़रूर दी थी, लेकिन यह राहत एक तूफ़ान से पहले की शांति जैसी थी। उसके ज़मीर का बोझ कम नहीं हुआ था, और बाहरी ख़तरे अब भी मंडरा रहे थे। इसी बीच, अपमानित और प्रतिशोध की आग में जलता हुआ प्योत्र पेत्रोविच लूज़िन, जिसने दुन्या और उसके परिवार से अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली थी, एक घिनौनी चाल चलने की तैयारी कर रहा था। उसका निशाना थी मासूम और बेबस सोन्या मार्मेलादोवा। मार्मेलादोव के देहांत के बाद, उसकी बेवा, कतेरीना इवानोव्ना, जो पहले से ही गंभीर रूप से बीमार यानि क्षय रोग से ग्रसित थी और मानसिक रूप से अस्थिर हो रही थी, ने अपने पति की याद में एक भोज का आयोजन किया। यह आयोजन उसकी हैसियत से कहीं ज़्यादा था, और उसकी बची-खुची जमा-पूँजी इसमें लग गयी। इस दुखद और अव्यवस्थित भोज में कई लोग शामिल हुए, जिनमें रास्कोलनिकोव, राज़ुमीखिन और लूज़िन भी थे (लूज़िन को कतेरीना ने शायद किसी पुरानी जान-पहचान या औपचारिकता वश बुलाया था)। लूज़िन इसी मौके की तलाश में था। वह सबके सामने सोन्या को अपमानित करके, रास्कोलनिकोव को नीचा दिखाना चाहता था, क्योंकि वह जानता था कि रास्कोलनिकोव सोन्या की परवाह करता है। उसने बड़ी चालाकी से, जब किसी का ध्यान नहीं था, सोन्या को बात करने के बहाने बुलाया और चुपके से सौ रूबल का एक नोट उसकी जेब में खिसका दिया। फिर, सबके सामने, उसने सोन्या पर पैसे चुराने का इलज़ाम लगा दिया। उसने शोर मचाया कि उसके सौ रूबल गायब हैं और उसे पूरा यकीन है कि सोन्या ने ही चुराए हैं। कतेरीना इवानोव्ना अपनी बेटी पर लगे इस इलज़ाम से आग-बबूला हो उठी, उसने सोन्या का बचाव किया, लेकिन लूज़िन ने ज़ोर देकर सोन्या की तलाशी लेने की मांग की। बेचारी सोन्या, भयभीत और स्तब्ध, कुछ बोल भी न सकी। जब उसकी जेब की तलाशी ली गयी, तो उसमें से सौ रूबल का नोट निकला। एक पल के लिए सब सन्न रह गए। सोन्या पर चोरी का इलज़ाम लगभग साबित हो गया था। कतेरीना इवानोव्ना का दिल टूट गया, उसे लगा जैसे उसकी बेटी ने उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी। लूज़िन विजयी भाव से मुस्कुरा रहा था, उसे लग रहा था कि उसका बदला पूरा हो गया। लेकिन लूज़िन की यह ख़ुशी ज़्यादा देर टिकने वाली नहीं थी। उसी कमरे में लूज़िन का रूममेट यानि साथ रहने वाला, अन्द्रेई सेम्योनोविच लेबेज़ियातनिकोव भी मौजूद था। लेबेज़ियातनिकोव कुछ नए, प्रगतिशील यानि प्रोग्रेसिव विचारों का अनुयायी था, थोड़ा भोला और आदर्शवादी। उसने लूज़िन को सोन्या की जेब में पैसे रखते हुए देख लिया था। हालाँकि वह लूज़िन से थोड़ा दबता था, पर इस अन्याय को देखकर उसका ज़मीर जाग गया। उसने हिम्मत करके सबके सामने सच उगल दिया। उसने बताया कि उसने खुद अपनी आँखों से लूज़िन को सोन्या की जेब में पैसे रखते देखा था। यह एक धमाके जैसा था। लूज़िन का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। उसने लेबेज़ियातनिकोव को झूठा साबित करने की कोशिश की, उसे धमकाया, पर लेबेज़ियातनिकोव अपनी बात पर अड़ा रहा। रास्कोलनिकोव, जो लूज़िन की नीचता को पहले से ही समझता था, तुरंत सोन्या के बचाव में आगे आया। उसने लूज़िन के इरादों का पर्दाफाश कर दिया, बताया कि यह सब उसने दुन्या द्वारा ठुकराए जाने का बदला लेने के लिए किया है। राज़ुमीखिन ने भी रास्कोलनिकोव का साथ दिया। देखते ही देखते सारा माहौल लूज़िन के ख़िलाफ़ हो गया। उसकी साज़िश का पर्दाफाश हो चुका था, उसका असली घिनौना चेहरा सबके सामने आ गया था। वह पूरी तरह से अपमानित हो चुका था, और उसके पास वहाँ से भाग जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। लूज़िन का यह पर्दाफाश होना कहानी में एक अहम मोड़ था, लेकिन इसका असर कतेरीना इवानोव्ना पर बहुत बुरा हुआ। इस सारे हंगामे, अपमान और तनाव ने उसकी पहले से ही कमज़ोर मानसिक और शारीरिक हालत को और बिगाड़ दिया। उसका दिमाग़ी संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया। इस घटना के बाद, कतेरीना इवानोव्ना की हालत तेज़ी से बिगड़ने लगी। वह पूरी तरह से अपने होश खो बैठी। उसे वहम होने लगे, वह बड़बड़ाने लगी। अपनी निराशा और हताशा की अंतिम अवस्था में, उसने एक दिल दहला देने वाला क़दम उठाया। उसने अपने छोटे-छोटे, मासूम बच्चों को अच्छे कपड़े पहनाए, और उन्हें लेकर पीटर्सबर्ग की सड़कों पर निकल गयी। वह बच्चों से नाचने-गाने और करतब दिखाने को कहने लगी, ताकि लोग उन्हें देखकर तरस खाएं और कुछ पैसे दे दें। वह खुद भी उन्माद की हालत में चीख़ रही थी, गा रही थी, और लोगों से भीख मांग रही थी। यह एक अत्यंत करुण और भयावह दृश्य था। राह चलते लोग रुक कर तमाशा देख रहे थे, कुछ हंस रहे थे, कुछ दया दिखा रहे थे। बच्चों की आँखों में भय और शर्मिंदगी थी, पर वे अपनी माँ के आदेश का पालन करने को मजबूर थे। रास्कोलनिकोव और सोन्या को जब यह पता चला, तो वे भागकर उसे खोजने निकले। उन्होंने उसे सड़क पर इसी दयनीय हालत में पाया। कतेरीना इवानोव्ना का शरीर अब जवाब दे रहा था। अचानक उसे ख़ून की उल्टी हुई, और वह सड़क पर ही गिर पड़ी। उसे उठाकर पास ही सोन्या के कमरे में लाया गया। डॉक्टर को बुलाया गया, पर बहुत देर हो चुकी थी। कतेरीना इवानोव्ना अपने अंतिम क्षणों में थी। उसके बच्चे उसके चारों ओर खड़े रो रहे थे। सोन्या असहाय होकर देख रही थी। रास्कोलनिकोव भी वहीं खड़ा था, इस मानवीय पीड़ा और त्रासदी को अपनी आँखों से देखता हुआ। कतेरीना इवानोव्ना ने सोन्या को अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी सौंपी और फिर उसकी आत्मा शांत हो गयी। इस मृत्यु ने मार्मेलादोव परिवार की कहानी को एक दुखद अंत दिया, और सोन्या को पूरी तरह से अनाथ और अपने छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी के बोझ तले दबा दिया। इस पूरी घटना ने रास्कोलनिकोव के मन पर एक गहरा प्रभाव डाला। उसने मानवीय पीड़ा और अन्याय को इतने क़रीब से देखा था कि उसका अपना अपराध और उसका सिद्धांत उसे और भी ज़्यादा खोखला और भयानक लगने लगा। सोन्या का निःस्वार्थ त्याग, उसकी सहनशीलता और उसकी पवित्रता उसे अपनी नज़र में और भी ज़्यादा गिरा हुआ महसूस करा रही थी। कतेरीना इवानोव्ना की मृत्यु और सोन्या की बेबसी को देखकर रास्कोलनिकोव का मन भारी हो गया। उसे लगा कि वह अब और इस बोझ के साथ नहीं जी सकता। उसे किसी के सामने अपना दिल खोलने की, अपने अपराध को स्वीकार करने की तीव्र इच्छा महसूस हुई। और वह जानता था कि वह एक ही इंसान है जो शायद उसे समझ सके, जो शायद उसे माफ़ न करे, पर उसकी पीड़ा को महसूस कर सके – वह थी सोन्या। वह सीधा सोन्या के कमरे में गया। सोन्या अपने पिता और सौतेली माँ की मृत्यु के शोक में डूबी हुई थी, भविष्य की चिंता उसे सता रही थी। रास्कोलनिकोव उसके सामने बैठ गया। माहौल बहुत गंभीर था। रास्कोलनिकोव के लिए यह क्षण आसान नहीं था। वह शब्द खोजने की कोशिश कर रहा था। उसकी आवाज़ कांप रही थी। उसने सोन्या की आँखों में देखा, जिनमें अथाह दुख और करुणा भरी थी। और फिर, उसने कहना शुरू किया। उसने सीधे-सीधे क़बूल नहीं किया, बल्कि पहले वह भूमिका बांधता रहा, अपने सिद्धांत के बारे में बात करता रहा, यह जानने की कोशिश करता रहा कि क्या सोन्या उसकी बात समझेगी। वह कहता रहा कि कैसे कुछ लोग समाज के लिए कीड़े-मकौड़ों जैसे होते हैं, और कैसे 'महान' लोग उन्हें रास्ते से हटाने का अधिकार रखते हैं। सोन्या उसकी बातें सुनकर भयभीत हो रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि रास्कोलनिकोव किस ओर इशारा कर रहा है। अंत में, रास्कोलनिकोव ने कांपती आवाज़ में, लगभग फुसफुसाते हुए, अपना भयानक राज़ उगल दिया। "सोन्या," उसने कहा, "मैंने... मैंने ही उस बुज़ुर्ग साहूकारा और... और लिज़ावेता को मारा था।" एक पल के लिए कमरे में भयानक ख़ामोशी छा गयी। सोन्या का चेहरा पीला पड़ गया, उसकी आँखें भय और अविश्वास से फैल गयीं। उसे लगा जैसे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी हो। वह व्यक्ति, जिसने उसके परिवार की इतनी मदद की थी, वह एक हत्यारा था? यह उसके लिए अविश्वसनीय था। सोन्या की पहली प्रतिक्रिया तीव्र भय और आघात की थी। वह पीछे हट गयी, रास्कोलनिकोव को ऐसे देख रही थी जैसे वह कोई राक्षस हो। लेकिन फिर, जैसे ही उसने रास्कोलनिकोव की आँखों में पीड़ा, उसके चेहरे पर पश्चाताप और उसके टूटे हुए वज़ूद को देखा, उसका भय करुणा में बदल गया। वह जानती थी कि रास्कोलनिकोव ने कितना भयानक पाप किया है, लेकिन वह यह भी देख सकती थी कि वह खुद इस पाप के बोझ तले कितना कुचल रहा है। सोन्या के अंदर की गहरी ईसाई आस्था और उसकी अपार सहानुभूति जाग उठी। उसने रास्कोलनिकोव को फटकारा नहीं, उसे बुरा-भला नहीं कहा। इसके बजाय, वह उसके क़रीब आयी, उसके सामने घुटनों के बल बैठ गयी, और रोने लगी – रास्कोलनिकोव के लिए रोने लगी। उसने कहा, "तुमने क्या किया अपने साथ? तुम कितने दुखी हो!" उसकी इस प्रतिक्रिया ने रास्कोलनिकोव को और भी ज़्यादा तोड़ दिया। उसे नफ़रत की उम्मीद थी, तिरस्कार की उम्मीद थी, पर उसे मिली करुणा। सोन्या ने उसे समझाया कि उसने कितना भयानक पाप किया है, न सिर्फ़ उन दो इंसानों के ख़िलाफ़, बल्कि खुद अपने ख़िलाफ़ और ईश्वर के ख़िलाफ़। उसने कहा कि उसे इस पाप का प्रायश्चित करना होगा। उसने रास्कोलनिकोव से आग्रह किया कि वह चौराहे पर जाए, ज़मीन को चूमे, और सबके सामने चिल्लाकर कहे, "मैंने हत्या की है!" उसने कहा कि उसे अपना अपराध स्वीकार करना होगा, सज़ा भुगतनी होगी, और पीड़ा सहकर ही उसे मुक्ति मिल सकती है। "पीड़ा स्वीकार करो और अपने पाप का प्रायश्चित करो, यही तुम्हारा रास्ता है," सोन्या ने कहा। उसने वादा किया कि वह उसका साथ नहीं त्यागेगी, वह साइबेरिया तक उसके साथ जाएगी, जहाँ भी उसे सज़ा भुगतने के लिए भेजा जाएगा। सोन्या के इन शब्दों में, उसकी आँखों में, रास्कोलनिकोव को पहली बार सच्ची मुक्ति की एक धुंधली सी झलक दिखाई दी। यह रास्ता कठिन था, पीड़ादायक था, पर शायद यही एकमात्र रास्ता था उसके ज़मीर को शांत करने का। लेकिन क्या वह इस रास्ते पर चलने के लिए तैयार था? क्या उसमें सबके सामने अपना गुनाह क़बूल करने की हिम्मत थी? यह सवाल अभी भी बना हुआ था। और इस पूरे भावनात्मक और विस्फोटक क्षण का एक अनचाहा गवाह भी था। बगल के कमरे में अर्कादी इवानोविच स्विद्रिगाइलोव मौजूद था, जो उनकी हर बात, हर शब्द सुन रहा था। अब रास्कोलनिकोव का भयानक राज़ सिर्फ़ सोन्या के पास नहीं था, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के पास भी था जो उसका इस्तेमाल अपने फ़ायदे के लिए कर सकता था। रास्कोलनिकोव का भविष्य अब और भी ज़्यादा अनिश्चित और ख़तरनाक हो गया था। इस ओडियोबुक के पाँचवें भाग में आपने लूज़िन की घिनौनी साज़िश और उसके पर्दाफाश को देखा, कतेरीना इवानोव्ना की दुखद मृत्यु को महसूस किया, और सबसे महत्वपूर्ण, रास्कोलनिकोव के सोन्या के सामने किए गए क़बूलनामे और सोन्या की असाधारण प्रतिक्रिया को जाना। यह भाग मानवीय पीड़ा, पश्चाताप और करुणा की गहराइयों को छूता है। अब, इस अध्याय में आपने जो भावनाएं महसूस कीं, ख़ासकर सोन्या की प्रतिक्रिया को, उसे ध्यान में रखते हुए मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, जब कोई अपना भयानक अपराध स्वीकार करता है, तो सोन्या जैसी प्रतिक्रिया – यानी क्रोध या भय के बजाय गहरी करुणा दिखाना – कितनी मुश्किल होती है? क्या आपको लगता है कि सोन्या का रास्ता – यानी सार्वजनिक स्वीकारोक्ति और सज़ा भुगतकर प्रायश्चित करना – ही रास्कोलनिकोव के लिए मुक्ति का एकमात्र सही मार्ग है? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि आप सोन्या की प्रतिक्रिया और उसके सुझाए रास्ते के बारे में क्या सोचते हैं। क्या प्रेम और करुणा किसी हत्यारे को भी बदल सकते हैं? आपके विचारों का हमें इंतज़ार रहेगा, और अगले भाग में हम देखेंगे कि रास्कोलनिकोव सोन्या की सलाह मानता है या नहीं, और स्विद्रिगाइलोव अपने ज्ञान का क्या इस्तेमाल करता है। भाग 6: अंतिम टकराव, विदाई और आत्मसमर्पण सोन्या के सामने अपना भयानक रहस्य खोल देने के बाद, रास्कोलनिकोव एक अजीब सी कशमकश में था। एक तरफ़ उसे सोन्या की करुणा और उसके सुझाए प्रायश्चित के मार्ग में मुक्ति की एक झिलमिलाती उम्मीद नज़र आ रही थी, लेकिन दूसरी तरफ़ उसका अहंकार, उसका 'असाधारण' बने रहने का मोह, और पकड़े जाने तथा सज़ा भुगतने का भय उसे पीछे खींच रहा था। उसे सोन्या के कहे शब्द बार-बार सुनाई दे रहे थे – "चौराहे पर जाओ, ज़मीन को चूमो, और कहो 'मैंने हत्या की है!'... पीड़ा स्वीकार करो।" यह विचार ही उसे कंपकंपी छुड़ा देता था। सार्वजनिक अपमान, जेल की कालकोठरी, साइबेरिया का निर्वासन – क्या वह यह सब सह पाएगा? क्या उसका सिद्धांत इतना गलत था कि उसे इस हद तक गिरना पड़े? इसी बीच, पोरफ़िरी पेत्रोविच, वह चतुर जांच अधिकारी, अभी भी चुप नहीं बैठा था। निकोलाय के झूठे क़बूलनामे ने उसे कुछ समय के लिए भ्रमित ज़रूर किया था, पर उसका शक रास्कोलनिकोव पर से हटा नहीं था। उसे अंदर ही अंदर यकीन था कि असली अपराधी रास्कोलनिकोव ही है। वह एक बार फिर रास्कोलनिकोव से मिलता है, लेकिन इस बार उसका अंदाज़ बिलकुल अलग था। अब वह मनोवैज्ञानिक खेल नहीं खेल रहा था, बल्कि लगभग एक मित्रवत, पर गंभीर लहज़े में बात कर रहा था। उसने साफ़-साफ़ कहा कि उसे पता है कि रास्कोलनिकोव ही हत्यारा है। उसने बताया कि उसके पास भले ही कोई सीधा सबूत न हो, पर सारे हालात, रास्कोलनिकोव का व्यवहार, उसका लेख, उसका पुलिस स्टेशन में बेहोश होना, सब उसी की तरफ़ इशारा करते हैं। उसने निकोलाय के क़बूलनामे को भी ख़ारिज कर दिया, कहा कि वह जानता है कि निकोलाय निर्दोष है और शायद किसी धार्मिक उन्माद या किसी और कारण से ऐसा कह रहा है। पोरफ़िरी ने रास्कोलनिकोव को एक मौका दिया। उसने कहा, "तुम्हारे पास अभी भी वक़्त है। खुद आकर आत्मसमर्पण कर दो। इससे तुम्हारी सज़ा कम हो जाएगी। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें गिरफ्तार करने पर मजबूर हो जाऊंगा, और फिर तुम्हारे लिए कोई रियायत नहीं होगी।" उसने उसे सोचने के लिए कुछ समय दिया, कहा कि वह उसके आत्मसमर्पण का इंतज़ार करेगा। यह पोरफ़िरी का अंतिम दांव था – एक सीधी चेतावनी और एक मानवीय अपील। रास्कोलनिकोव के लिए अब भागने के सारे रास्ते बंद होते जा रहे थे। या तो वह स्वेच्छा से पीड़ा का मार्ग चुने, या फिर उसे ज़बरदस्ती उस पर घसीटा जाए। यह मुलाक़ात रास्कोलनिकोव के अंदर के संघर्ष को और तीव्र कर देती है। उसे पोरफ़िरी की बातों में सच्चाई नज़र आती है, उसे लगता है कि अब आत्मसमर्पण ही एकमात्र विकल्प बचा है, पर उसका मन अभी भी पूरी तरह तैयार नहीं है। इसी उथल-पुथल के बीच, अर्कादी इवानोविच स्विद्रिगाइलोव का ख़तरा और गहरा हो जाता है। वह रास्कोलनिकोव का रहस्य जान चुका था, और अब वह इसका इस्तेमाल अपनी घिनौनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए करना चाहता था। वह दुन्या के पीछे पड़ा हुआ था। उसने दुन्या से संपर्क साधा, उसे बताया कि वह उसके भाई के बारे में एक भयानक सच जानता है, और अगर दुन्या उससे अकेले में मिलेगी, तो वह उसे सब कुछ बता देगा और शायद उसके भाई को बचाने में मदद भी करेगा। दुन्या अपने भाई को लेकर चिंतित थी, उसे स्विद्रिगाइलोव पर बिलकुल भरोसा नहीं था, पर भाई की सलामती की ख़ातिर वह उससे मिलने को तैयार हो गयी। उसने अपनी सुरक्षा के लिए चुपके से एक रिवॉल्वर यानि पिस्तौल अपने साथ रख ली। उनकी मुलाक़ात स्विद्रिगाइलोव के कमरे में हुई। स्विद्रिगाइलोव ने पहले तो उसे पैसों का लालच दिया, फिर उसे अपने साथ भाग चलने को कहा, और अंत में जब दुन्या ने उसकी कोई भी बात मानने से इंकार कर दिया, तो उसने अपना असली रंग दिखाया। उसने रास्कोलनिकोव के क़बूलनामे की बात बताई, जो उसने सोन्या के कमरे से सुनी थी। उसने दुन्या को ब्लैकमेल यानि भयादोहन करने की कोशिश की – कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगी, तो वह रास्कोलनिकोव को पुलिस के हवाले कर देगा। उसने कमरे का किवाड़ यानि द्वार बंद कर दिया और दुन्या को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की। लेकिन दुन्या कमज़ोर नहीं थी। उसने हिम्मत दिखाई और रिवॉल्वर निकाल ली। उसने स्विद्रिगाइलोव पर गोली चलाई, पर निशाना चूक गया। स्विद्रिगाइलोव एक पल के लिए चौंका, पर फिर वह उसके और क़रीब आने लगा। दुन्या ने फिर से गोली चलाई, इस बार गोली स्विद्रिगाइलोव के कान के पास से निकल गयी। स्विद्रिगाइलोव को एहसास हुआ कि दुन्या उससे कितनी नफ़रत करती है, कि वह मर जाएगी पर उसके हाथ नहीं आएगी। अचानक, उसके अंदर कुछ बदल गया। शायद दुन्या की इस नफ़रत ने, उसकी इस दृढ़ता ने, उसे उसकी अपनी ज़िंदगी की व्यर्थता और उसके अपने पापों का एहसास करा दिया। उसने चाबी दुन्या की तरफ़ फेंकी और उसे जाने दिया। दुन्या भागकर वहाँ से निकल गयी। इस घटना ने स्विद्रिगाइलोव को पूरी तरह से तोड़ दिया। उसे समझ आ गया कि उसे वह कभी नहीं मिल सकती जिसे वह शायद अपनी विकृत तरीके से चाहता था। उसकी ज़िंदगी में अब कोई मकसद नहीं बचा था। वह रात भर पीटर्सबर्ग की गीली, अंधियारी राहों पर भटकता रहा, अपनी बीती ज़िंदगी के बुरे कर्मों को याद करता रहा। उसने सोन्या को कतेरीना इवानोव्ना के बच्चों की परवरिश के लिए काफ़ी सारे पैसे दिए, शायद यह उसके जीवन का एकमात्र अच्छा काम था। और फिर, भोर होने से ठीक पहले, एक सुनसान जगह पर, उसने उसी रिवॉल्वर से खुद को गोली मारकर अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर ली। स्विद्रिगाइलोव का अंत उसके जीवन की तरह ही अंधकारमय और त्रासद था, लेकिन उसकी मृत्यु ने अनजाने में ही रास्कोलनिकोव को एक बड़े ख़तरे से मुक्त कर दिया था। स्विद्रिगाइलोव की मृत्यु की ख़बर और पोरफ़िरी की चेतावनी के बाद, रास्कोलनिकोव को यह स्पष्ट हो गया था कि अब उसके पास ज़्यादा समय नहीं है। उसे एक अंतिम निर्णय लेना ही होगा। सोन्या के शब्द, पोरफ़िरी की सलाह, और उसके खुद के अंदर उठती पश्चाताप की लहरें – सब उसे एक ही दिशा में ले जा रही थीं: आत्मसमर्पण। लेकिन इससे पहले, वह अपने प्रियजनों से विदा लेना चाहता था। सबसे पहले वह अपनी माँ, पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना से मिलने गया। यह मुलाक़ात अत्यंत भावुक और हृदयविदारक थी। रास्कोलनिकोव अपनी माँ से सीधे-सीधे कुछ नहीं कह सका। वह जानता था कि सच उन्हें मार डालेगा। उसने बस इतना कहा कि उसे बहुत दूर जाना है, कि वे शायद फिर कभी न मिलें। उसने अपनी माँ से उसे हमेशा प्यार करने का वादा लिया, चाहे वह कुछ भी सुने। माँ का दिल किसी अनिष्ट की आशंका से भर गया, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, पर उसने अपने बेटे को अपना आशीर्वाद दिया। रास्कोलनिकोव के लिए अपनी माँ से यह अंतिम विदाई लेना असहनीय था, वह जानता था कि वह उन्हें कितना कष्ट पहुँचा रहा है। इसके बाद वह अपनी बहन दुन्या से मिला। दुन्या अब तक स्विद्रिगाइलोव से हुई मुलाक़ात के कारण रास्कोलनिकोव का सच जान चुकी थी (या कम से कम उसका अंदाज़ा लगा चुकी थी)। उनके बीच ज़्यादा शब्द नहीं थे, पर उनकी ख़ामोशी में गहरा दुख और समझ थी। दुन्या ने अपने भाई का हाथ थामा, उसकी आँखों में भय और पीड़ा थी, पर नफ़रत नहीं थी। रास्कोलनिकोव ने उसे बताया कि वह आत्मसमर्पण करने जा रहा है। दुन्या रो पड़ी, पर उसने उसके निर्णय का सम्मान किया। उसने भी उसे अपना प्यार और समर्थन दिया। अंत में वह राज़ुमीखिन से मिला। राज़ुमीखिन को अभी भी पूरी सच्चाई नहीं पता थी, पर वह समझ गया था कि मामला बहुत गंभीर है। रास्कोलनिकोव ने उसे अपनी माँ और बहन का ख़याल रखने को कहा। राज़ुमीखिन ने बिना कोई सवाल पूछे, पूरी वफ़ादारी से इसका वादा किया। इन विदाईयों ने रास्कोलनिकोव को और ज़्यादा अकेला, पर साथ ही अपने निर्णय पर और ज़्यादा मज़बूत बना दिया था। उसने अपने प्रियजनों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाई थी, अब उसे अपने अपराध के प्रति ज़िम्मेदारी निभानी थी। अब अंतिम क़दम उठाने का वक़्त था। रास्कोलनिकोव सोन्या के पास गया। सोन्या उसे उसी चौराहे पर ले गयी जिसका ज़िक्र उसने पहले किया था – हेमार्केट स्क्वायर यानि सेनया चौक। भीड़भाड़ वाला चौराहा। सोन्या ने उसे फिर याद दिलाया कि उसे क्या करना है। रास्कोलनिकोव हिचकिचा रहा था, उसका शरीर कांप रहा था, उसका अहंकार उसे रोक रहा था। सबके सामने ज़मीन चूमना, सबके सामने चिल्लाना – यह अपमानजनक था। लेकिन फिर उसने सोन्या की आँखों में देखा, जिनमें विश्वास और प्रतीक्षा थी। उसने भीड़ को देखा, उन साधारण लोगों को, जिन्हें उसने अपने सिद्धांत में कीड़े-मकौड़े समझा था। उसे अचानक उन सबके लिए, पूरी मानवता के लिए, एक अजीब सी करुणा महसूस हुई। उसने घुटने टेके, और पीटर्सबर्ग की धूल भरी ज़मीन को चूम लिया। लोग उसे देखकर हंसने लगे, किसी ने कहा "शराबी है!" पर रास्कोलनिकोव को अब परवाह नहीं थी। वह उठा, और उसके मुँह से वह वाक्य निकलने ही वाला था, "मैंने हत्या की है!" लेकिन वह कह नहीं पाया। शायद अभी भी पूरी तरह तैयार नहीं था। सोन्या थोड़ी निराश हुई, पर उसने उसका हाथ थामा। वह जानता था कि उसे क्या करना है। वह सीधा पुलिस स्टेशन की ओर चल दिया। उसके क़दम मज़बूत थे। वह पुलिस स्टेशन के किवाड़ यानि द्वार तक पहुँचा, अंदर गया। वहाँ उसे एक पुलिस अधिकारी मिला, वही इल्या पेत्रोविच, जिससे उसकी पहले भी मुलाक़ात हो चुकी थी। रास्कोलनिकोव ने गहरी सांस ली, और शांत, पर दृढ़ आवाज़ में कहा, "वह मैं था... मैंने ही उस बुज़ुर्ग साहूकारा और उसकी बहन लिज़ावेता को कुल्हाड़ी से मारा था।" आखिरकार, उसने क़बूल कर लिया था। एक भारी बोझ उसके सीने से उतर गया था, लेकिन साथ ही एक अंतहीन, कष्टप्रद यात्रा शुरू होने वाली थी। उसका अपराध अब दुनिया के सामने था, और दंड का सामना करने का समय आ गया था। क्या सोन्या का विश्वास सही साबित होगा? क्या पीड़ा सहकर उसे सचमुच मुक्ति मिलेगी? यह कहानी का अंत नहीं था, बल्कि एक नई, कठिन शुरुआत थी। इस ओडियोबुक के छठे और अंतिम भाग में आपने रास्कोलनिकोव के अंतिम संघर्ष, पोरफ़िरी और स्विद्रिगाइलोव के साथ उसके निर्णायक टकराव, अपने प्रियजनों से उसकी भावुक विदाई, और अंततः उसके आत्मसमर्पण को महसूस किया। आपने देखा कि कैसे बाहरी दबावों और आंतरिक पश्चाताप ने मिलकर उसे सोन्या द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने के लिए विवश कर दिया। अब, इस अध्याय के अंत में, जहाँ रास्कोलनिकोव ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है, मैं आपको एक लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, रास्कोलनिकोव का आत्मसमर्पण क्या उसकी हार थी, या उसकी पहली जीत? क्या पीड़ा और सज़ा भुगतना वास्तव में किसी व्यक्ति को नैतिक रूप से शुद्ध कर सकता है और उसे मुक्ति दिला सकता है? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि आपके विचार में रास्कोलनिकोव के लिए आत्मसमर्पण करने का निर्णय सही था या नहीं, और क्या आप मानते हैं कि सच्चा पश्चाताप सज़ा के बिना संभव है? हमें आपके विचारों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा। और इसके साथ ही दोस्तोयेव्स्की के महान उपन्यास "अपराध और दंड" के मुख्य कथा का यह ओडियोबुक सारांश यहीं समाप्त होता है। उपसंहार यानि एपिलॉग में हम जानेंगे कि रास्कोलनिकोव के जीवन ने साइबेरिया में क्या मोड़ लिया। उपसंहार: दण्ड भुगतना और मुक्ति की तरफ़ रास्कोलनिकोव का आत्मसमर्पण महज़ एक क़ानूनी कार्यवाही का अंत नहीं था, बल्कि यह उसके जीवन की एक नयी, अत्यंत कठिन और पीड़ादायक यात्रा की शुरुआत थी। उसका औपचारिक क़बूलनामा हो गया। मुक़दमे की कार्यवाही चली। अदालत ने उसके अपराध की गंभीरता को माना – दो जानें लेना, वह भी एक क्रूर तरीके से। लेकिन कुछ बातें उसके पक्ष में भी गयीं। उसका खुद आकर आत्मसमर्पण करना, उसके दोस्त राज़ुमीखिन और दूसरों द्वारा दी गयी गवाहियाँ कि वह पहले एक भला, दयालु छात्र था, जिसने अपनी जान जोखिम में डालकर जलते हुए घर से बच्चों को बचाया था (यह शायद उसकी पुरानी नेकी का ज़िक्र था जो उसके पक्ष में गया), और मार्मेलादोव परिवार की उसने जो आर्थिक सहायता की थी – इन सब बातों पर गौर किया गया। साथ ही, यह भी माना गया कि अपराध के समय उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी, वह लगभग विक्षिप्त अवस्था में था। इन सब रियायतों को ध्यान में रखते हुए, उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास के बजाय साइबेरिया में आठ साल की कड़ी मेहनत की सज़ा सुनाई गयी। आठ साल। यह सुनने में शायद कम लगे, पर साइबेरिया के उस बर्फ़ीले, वीरान नरक में एक-एक दिन एक साल जैसा होता है। यह सज़ा उसके भयानक अपराध के लिए शायद कम थी, पर यह उसके प्रायश्चित और संभावित बदलाव के लिए एक अवसर ज़रूर थी। लेकिन क्या रास्कोलनिकोव इस अवसर को समझ पाया? क्या वह अपनी सज़ा को सिर्फ़ एक शारीरिक कष्ट के रूप में देख रहा था, या वह इसे अपनी आत्मा के शुद्धिकरण का माध्यम मानने को तैयार था? शुरुआत में, ऐसा बिलकुल नहीं लगा। साइबेरिया का जीवन कठोर था, असहनीय था। हाड़ कंपा देने वाली सर्दी, कठिन शारीरिक श्रम, खुरदुरे, अशिष्ट क़ैदियों का साथ, और सबसे बढ़कर, स्वतंत्रता का पूरी तरह छिन जाना। पर रास्कोलनिकोव को शारीरिक कष्ट उतना परेशान नहीं कर रहा था, जितना कि उसकी आत्मा का अकेलापन और उसके टूटे हुए अहंकार की पीड़ा। वह अब भी खुद को उन बाकी 'साधारण' क़ैदियों से अलग, उनसे बेहतर समझता था। वह उनसे घुलता-मिलता नहीं था, उनके साथ काम तो करता था, पर एक दूरी बनाए रखता था। वह पश्चाताप महसूस नहीं कर रहा था, कम से कम उस तरह से नहीं जैसा सोन्या चाहती थी। वह सोचता था कि उसका अपराध भयानक था, पर उसका सिद्धांत गलत नहीं था। वह इस बात पर कुढ़ता था कि वह नेपोलियन क्यों नहीं बन पाया, वह कहाँ कमज़ोर पड़ गया? वह अपने अपराध की नैतिकता पर सवाल नहीं उठा रहा था, बल्कि अपनी असफलता पर शर्मिंदा था। उसे लगता था कि उसकी सज़ा उसकी बेवकूफ़ी और कमज़ोरी का परिणाम है, न कि उसके कर्मों का न्यायसंगत फल। दूसरे क़ैदी भी उससे नफ़रत करते थे। वे उसे 'नास्तिक' और 'भला मानुस' यानि शरीफ़ज़ादा कहकर उसका मज़ाक उड़ाते थे। वे महसूस करते थे कि वह उनमें से नहीं है, कि वह उन्हें नीची निगाह से देखता है। इस आपसी घृणा और अकेलेपन ने रास्कोलनिकोव को और ज़्यादा कठोर और अलग-थलग बना दिया। वह जेल के अस्पताल में ज़्यादा समय बिताने लगा, कभी सचमुच बीमार होकर, कभी बस उस माहौल से बचने के लिए। उसका हृदय अब भी पत्थर का बना हुआ था, पश्चाताप की कोमल भावना से कोसों दूर। लेकिन एक व्यक्ति था जिसने उसका साथ नहीं छोड़ा था, जिसने अपना वादा निभाया था – सोन्या। जैसे उसने कहा था, वह रास्कोलनिकोव के पीछे-पीछे साइबेरिया तक आ गयी थी। वह पास के एक छोटे से क़स्बे में रहने लगी और सिलाई-कढ़ाई करके अपना गुज़ारा करने लगी। वह हर हफ़्ते, मिलने के तयशुदा दिनों पर, या त्योहारों पर रास्कोलनिकोव से मिलने आती थी। वह ज़्यादा कुछ कहती नहीं थी, बस उसकी बातें सुनती थी, उसे देखती थी, और उसकी आँखों में वही अथाह प्रेम, करुणा और अटूट विश्वास होता था। वह उसके लिए खाने-पीने का सामान लाती, उसके कपड़ों का ध्यान रखती, और बस उसकी उपस्थिति ही रास्कोलनिकोव के लिए एक मूक सहारे का काम करती थी, भले ही वह इसे स्वीकार न करना चाहे। दिलचस्प बात यह थी कि जिन क़ैदियों से रास्कोलनिकोव नफ़रत करता था, और जो क़ैदी उससे नफ़रत करते थे, वे सब सोन्या को बहुत प्यार और सम्मान देते थे। वे उसे 'नन्ही माँ सोन्या' कहकर बुलाते थे। वे उसके पास अपनी तकलीफें लेकर आते, उससे सलाह मांगते, और वह अपनी सादगी और सहानुभूति से सबको दिलासा देती थी। सोन्या की यह निःस्वार्थ सेवा, उसका यह मौन प्रेम, धीरे-धीरे रास्कोलनिकोव के कठोर हृदय पर असर करने लगा, हालाँकि वह इसे मानने को तैयार नहीं था। सोन्या की उपस्थिति उसे लगातार याद दिलाती थी कि दुनिया में सिर्फ़ क्रूरता और स्वार्थ ही नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और आस्था भी मौजूद है। वह बाइबिल भी साथ लायी थी, वही बाइबिल जिससे उसने रास्कोलनिकोव को लाज़रस की कहानी पढ़कर सुनाई थी। रास्कोलनिकोव ने उसे अपने तकिये के नीचे रख लिया था, पर अब तक खोला नहीं था। फिर एक बड़ा बदलाव आया। रास्कोलनिकोव जेल में गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। यह बीमारी सिर्फ़ शारीरिक नहीं थी, यह शायद उसकी आत्मा के टूटने और फिर से जुड़ने की प्रक्रिया का हिस्सा थी। बीमारी की हालत में, अर्ध-चेतना में, उसने एक अजीब और भयानक सपना देखा। उसने देखा कि पूरी दुनिया में एक नयी, भयानक महामारी फैल गयी है, एक ऐसी बीमारी जो लोगों के दिमाग़ पर असर करती है। इस बीमारी से ग्रस्त हर व्यक्ति को लगता था कि सिर्फ़ वही सच जानता है, सिर्फ़ उसी के विचार सही हैं, और बाकी सब गलत हैं। लोग एक-दूसरे की बात सुनना बंद कर देते हैं, वे छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगते हैं, सेनाएं आपस में भिड़ने लगती हैं, शहर जलने लगते हैं, अकाल पड़ जाता है, और पूरी मानवजाति आत्म-विनाश की तरफ़ बढ़ जाती है। हर कोई खुद को असाधारण समझता है और अपने सच को स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। यह सपना रास्कोलनिकोव के लिए एक आईना था। उसने अपने ही सिद्धांत का, अपने ही अहंकार का वैश्विक, भयावह रूप देखा। उसे एहसास हुआ कि अगर हर कोई खुद को क़ानून और नैतिकता से ऊपर समझने लगे, तो दुनिया का क्या हश्र होगा। यह सपना उसे अंदर तक झकझोर गया। उसे पहली बार अपने सिद्धांत की भयावहता और खोखलेपन का गहरा एहसास हुआ। यह बीमारी और यह सपना उसके परिवर्तन की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए। बीमारी से उबरने के बाद, ईस्टर का समय था। एक दिन काम के दौरान, रास्कोलनिकोव जेल के पास बहती चौड़ी नदी के किनारे अकेला बैठा था। साइबेरिया का विशाल, खुला आसमान उसके ऊपर था, और नदी का शांत प्रवाह उसके सामने। वह दूर तक फैली स्टेपी यानि घास के मैदान को देख रहा था, जहाँ कभी खानाबदोश क़बीलों के गीत गूंजते होंगे। उस विशाल प्रकृति के सामने उसे अपनी क्षुद्रता का एहसास हुआ। तभी उसने देखा कि सोन्या उससे मिलने आ रही है। वह रोज़ की तरह ही शांत और प्रेममयी लग रही थी। जैसे ही सोन्या उसके पास पहुँची, अचानक, बिना किसी सोचे-समझे तर्क के, रास्कोलनिकोव के अंदर कुछ टूट गया। उसका सारा बौद्धिक अहंकार, उसका सारा सिद्धांत, उसकी सारी कड़वाहट पिघल गयी। उसे सोन्या के प्रेम की गहराई, उसके त्याग की महानता का तीव्र एहसास हुआ। उसकी आँखों से आँसू बह निकले, और वह सोन्या के पैरों पर गिर पड़ा। वह रोता रहा, सोन्या के घुटनों से लिपटकर रोता रहा। सोन्या पहले तो डर गयी, पर फिर वह समझ गयी। यह आँसू पश्चाताप के थे, यह आँसू स्वीकृति के थे, यह आँसू एक टूटे हुए हृदय के थे जो अब प्रेम और आस्था के लिए खुल रहा था। वे दोनों वहीं बैठे रहे, उनके आस-पास की दुनिया जैसे थम सी गयी थी। उस क्षण में, शब्द ज़रूरी नहीं थे। रास्कोलनिकोव ने आखिरकार अपनी पीड़ा को स्वीकार कर लिया था, और सोन्या के प्रेम ने उसे मुक्ति का रास्ता दिखा दिया था। उसकी सज़ा के अभी सात साल बाक़ी थे। आगे का रास्ता अब भी लंबा और कठिन था, पर अब वह अकेला नहीं था। उसके पास सोन्या का साथ था, और उसके हृदय में एक नयी आशा और विश्वास का अंकुर फूट चुका था। उसके तकिये के नीचे रखी बाइबिल अब सिर्फ़ एक किताब नहीं थी, बल्कि भविष्य में पढ़े जाने वाले सत्य का प्रतीक थी। उसकी "धीरे-धीरे नवीनीकरण" यानि gradual renewal की कहानी, एक इंसान से दूसरे इंसान में उसके क्रमिक संक्रमण की कहानी, अब शुरू हो रही थी। उधर पीटर्सबर्ग में, राज़ुमीखिन और दुन्या ने शादी कर ली थी, वे ख़ुशी से रह रहे थे और भविष्य की योजनाएं बना रहे थे। लेकिन बेचारी पुलखेरिया अलेक्सान्द्रोव्ना अपने बेटे के अपराध और उससे जुदाई का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पायी थी, और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी थी। हर किसी को अपने कर्मों का फल भुगतना था, और हर किसी की मुक्ति का मार्ग अलग था। इस ओडियोबुक के उपसंहार में आपने रास्कोलनिकोव की सज़ा की शुरुआत, साइबेरिया के जीवन की कठोरता, और सबसे महत्वपूर्ण, सोन्या के अटूट प्रेम और विश्वास के प्रभाव को देखा। आपने महसूस किया कि कैसे एक भयानक सपने और सोन्या की निरंतर उपस्थिति ने रास्कोलनिकोव के पत्थर दिल को पिघला दिया और उसे सच्चे पश्चाताप और मुक्ति की राह दिखाई। यह अंत एक दुखद कहानी का अंत नहीं, बल्कि आशा और मानवीय आत्मा की असीम संभावनाओं की ओर इशारा है। अब, इस पूरी ओडियोबुक के समापन पर, मैं आपको अंतिम लक्ष्य देना चाहता हूँ। सोचिए, क्या प्रेम और आस्था में इतनी शक्ति होती है कि वे सबसे गिरे हुए इंसान को भी बदल सकें? क्या पीड़ा सहना और सज़ा भुगतना वास्तव में आत्मिक शुद्धि के लिए ज़रूरी है? दोस्तोयेव्स्की हमें दिखाते हैं कि मुक्ति का मार्ग आसान नहीं है, इसमें समय लगता है, पीड़ा होती है, लेकिन यह संभव है, ख़ासकर जब निःस्वार्थ प्रेम का सहारा हो। नीचे कमेंट्स में हमें बताएं कि रास्कोलनिकोव के इस परिवर्तन के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि वह पूरी तरह बदल जाएगा? और आपके लिए "अपराध और दंड" का सबसे बड़ा संदेश क्या है? हमें आपके विचारों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा। मिलते हैं अगली ओडियोबुक में, धन्यवाद।
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Crime and Punishment Novel by Fyodor Dostoevsky 20250506 122152.txt
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